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________________ प्रथम पर्व २०६ आदिनाथ-चरित्र सुनन्दा के शरीर की शोभा। नाभिराज का सुनन्दा को पुत्रवधूरूप में स्वीकार करना । कुछ समय बाद उसके माता-पिता भी परलोकगामी हुए, क्योंकि सन्तान होनेके बाद युगलिये कुछ दिन ही जीते हैं। माँ. बापकी मृत्यु होनेके बाद, वह चपलनयनी बालिका- “अब क्या करना चाहिये” इस विचारमें जड़ीभूत होगई और अपने झुण्डसे बिछुड़ी हुई हिरनी की तरह जंगलमें अकेली घूमने लगी। सरल अंगुली रूपी पत्तोंवाले चरणोंसे पृथ्वी पर कदम रखती हुई वह ऐसी मालूम होती थी, गोया खिले हुए कमलों को ज़मीन पर आरोपण. करती हो। उसकी दोनों पिंडलियाँ सुवर्ण-रचित तरकस-जैसी शोभा देती थीं। अनुक्रमसे विशाल और गोलाकार उसकी जाँघे हाथी की सूंड जैसी दीखती थीं। चलते समय उसके पुष्ट नितम्ब-चूतड़ कामदेवरूपी जुआरी द्वारा बिछाई हुई सोनेकी चौपड़के विलास कोधारण करते थे। मुट्ठीमें आनेवाले और कामके खींचने के आँकड़े जैसे मध्यभागसे एवं कुसुमायुधके खेलनेकी वापिका जैसी सुन्दर नाभिसे वह बहुत अच्छी लगती थी। उसके पेटपर त्रिवली रूपी तरंगें लहर मारतीथीं। उसकी त्रिवली को देखने से ऐसा जान पड़ता था, मानो उसने अपने सौन्दर्य से त्रिलोकी को जीतकर तीन रेखाएँ धारण की हैं। उसके स्तनद्वय रतिपीतिके दो क्रीडा-पर्वतसे जान पड़ते थे और रतिपीतिके हि'डोले की दो सुवर्ण की डंडियोंके जैसी उसकी भुजल
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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