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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व
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प्रभुका बाल्यकाल ।
इधर स्वामिनी मरुदेवा सवेरे के समय ज्योंही उठी; उन्होंने रात के स्वप्न की तरह अपने पति नाभिराज से देवताओं के आने-जाने का सारा हाल कहा। जगदीश के उरु या जाँघ पर ऋषभ का चिह्न था, उसी तरह माता ने भी सारे सुपने में पहले ऋषभ ही देखा था, इससे आनन्दमग्न माता-पिताने शुभ दिवस में, उत्साह-पूर्वक प्रभु का नाम ऋषभ रक्खा। उन्हीं के साथ युग्म-धर्मसे पैदा हुई कन्या का नाम भी सुमंगला ऐसा यथार्थ और पवित्र नाम रक्खा। वृक्ष जिस तरह नीक का जल पीता है ; उसी तरह ऋषभ स्वामी इन्द्र के संक्रमण किये हुए अ गूठे का अमृत उचित समयपर पीने लगे। पर्वत की गुफामें बैठा हुआ किशोर सिंह जिस तरह शोभायमान लगता है ; उसी तरह पिता की गोद में बैठे हुए भगवान् शोभायमान थे। जिस तरह पाँच समिति महामुनि को नहीं छोड़ती ; उसी तरह इन्द्र की आज्ञा से रही हुई पाँचों धायें प्रभु को किसी समय भी अकेला नहीं छोड़ती थीं।
इक्ष्वाकु नामक वंशस्थापन प्रभु का जन्म हुए ज्योंही एक वर्ष होने को आया, त्योंही सौधर्मेन्द्र वंश-स्थापन करने के लिये वहाँ आया। सेवक को