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प्रथम पर्व
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आदिनाथ-चरित्र चाँदी और रत्नोके एवं मिट्टीके आठ माइल ऊँचे आठ तरहके प्रत्येक देवने एक हजार आठ सुन्दर कलश बनाये। कलशों
की संख्याके प्रमाणसे उसी तरह सुवर्णादिकी आठ प्रकार • की झारियाँ, दर्पण, रत्न, कण्डक, डिब्बियाँ, थाल, पात्रिका, 'फूलों की भंगेरी, ये सब मानो पहलेसे ही बनाकर रखी हों, इस तरह तत्काल बनाकर वहाँ से लाये। पीछे वर्षा के जलकी तरह क्षीर समुद्र से उन्होंने कलश भर लिये और मानो इन्द्र को क्षीर समुद्र के जल का अभिज्ञान कराने के लिये ही हो, इस तरह पुण्डरीक, उत्पल और कोकनर जाति के कमल भी वहीं से संग ले लिये। जल भरनेवाले पुरुष घड़े से जलाशय में जल ग्रहण करें, उस तरह हाथ में घड़े लिये हुए देवोंने पुष्करवर समुद्र से पुष्कर जात के कमल ले लिये। मानो अधिक घड़े बनाने के लिये ही हों, इस तरह मागध आदि तीर्थों से उन्होंने जल और मिट्टी ली। जिस तरह ख़रीद करनेवाले पुरुष बानगी लेते हैं. उसी तरह गंगा आदि महा नदियों से उन्होंने जल ग्रहण किया। मानो पहलेसे ही धरोहर रखी हो, इस तरह क्षुद्र हिमवन्त पर्वत से सिद्धार्थ पुष्प, श्रेष्ठ गन्ध द्रव्य और सर्वोषधियाँ लीं। उसी पहाड़ के ऊपर के पद्म नाम के सरोवर से निर्मल, सुगन्धित और पवित्र जल और कमल लिये। एक ही काम में लगे रहने से मानो स्पर्धा करते हों, इस तरह उन्होंने दूसरे पर्वत के तालाबोंमें से पद्म प्रभृति लिये। सब क्षेत्रों से, वैताढ्य के ऊपरसे और विजयोंमें से, अतृप्त के सदृश देवताओं ने, स्वामी के