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________________ आदिनाथ-चरित्र १६८ प्रथम पर्व कितने ही वायुके आकर्षणसे गन्धके चलनेकी तरह, अपने मित्रोंके आकर्षणसे अपने अपने घरों से चल दिये। इस तरह अपने अपने सुन्दर विमानों और अन्य वाहनोंसे, मानो दूसरा स्वर्ग हो इस तरह, आकाशको सुशोभित करते हुए देवराज इन्द्रके पास आकर इकट्ठे होगये। पालक विमानकी रचना । उस समय पालक नामक अभियोगिक देवको सुरपतिने असम्भाव्य और अप्रतिम यानी लाजवाब और वेजोड़ विमान रचने की आज्ञा दी । स्वामीकी आज्ञा पालन करने वाले-मालिकके हुक्म मुताबिक काम करने वाले देवने तत्काल इच्छनुगामीमरजीके माफिक चलने वाला-बिमान रचकर तैयार कर दिया। वह विमान हज़ारों रत्न-निर्मित स्तम्भों-खम्भों के किरणसमूह से आकाश को पवित्र करता था। उसमें बनी हुई खिड़कियाँ उसके नेत्रों-जैसी, दीर्घ ध्वजाये उसकी भुजाओं जैसी और वेदिकाये उसके दाँतों जैसो मालूम होतो थीं एव' सोनेके कलशोंसे वह पुलकित हुआ सा जान पड़ता था। उसकी उँचाई ४००० मीलकी और विस्तार या लम्बाई चौड़ाई ८ लाख मीलकी थी। उस विमानमें कान्तिकी तरङ्ग वाली तीन सोपान-पंक्तियों या सीढ़ियोंकी कतारें थीं जो हिमालय पहाड़ पर गंगा सिन्धु और रोहिताशा नदियोंके जैसी मालू म होती थीं। उन सोपान-पंक्तियों या सीढ़ियोंकी कतारके आगे, इन्द्र धनुषकी शोभाको धारण करने
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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