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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व नमस्कार कर, अपना कार्य जना, हाथ में चँवर ले गीत गाती हुई पश्चिम दिशामें खड़ी होगई।
विदिशाओं के रुचक पर्वत से चित्रा, चित्रकनका; सतेरा सूत्रामणि नाम्नी चार दिक्कुमारियाँ भी आई और पहलेवालियों की तरह जिनेश्वर और माता को नमस्कार कर, अपना काम जना; हाथ में दीपक ले ईशान प्रभृति विदिशाओं में खड़ी रहीं। ___ रुचक द्वीप से रूपा, रूपासिका, सुरूपा, और रूपकावती नाम की चार दिक्कुमारिकायें भी वहाँ तत्काल आई। उन्होंने भगवान् का नाभि-नाल चार अङ्गुल छोड़कर छेदन किया। इसके बाद वहाँ खड्डा खोद, उसमें उसे डाल, गड्ढे को रत्न और वज्र से पूर दिया और उसके ऊपर दृब से पीठिका बाँधी। इसके बाद भगवान् के जन्म-घर के लगता-लगत, पूरब-दक्खन और उत्तर दिशाओं में, उन्होंने लक्ष्मी के घररूप तीन कदलीगृह या केलेके घर बनाये। उनमें से प्रत्येक घर में उन्होंने विमान में हों ऐसे विशाल और सिंहासन से भूषित चतुःशाल या चौक बनाये। फिर जिनेश्वर को अपनी हस्ताञ्जलि में ले, जिन माता को चतुर दासी या होशियार टहलनी की तरह, हाथ का सहारा देकर, चतुःशाल या चौक में ले गई। वहाँ दोनों को सिंहासनपर बिठाकर, बूढी मालिश करनेवाली की तरह, वे खुशबूदार लक्षपाक तेल की मालिश करने लगीं। तैलके अमन्द आमोद की सुगन्ध से दिशाओं को प्रमुदित करके, उन्होंने उन दोनोंके दिव्य उबटन लगाया। फिर पूर्व दिशा की चतुःशाल में ले जाकर,