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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र उनके नेत्र विशेष विकार को प्राप्त होगये; अर्थात् भगवान् का मुंह देखने की उत्कंठा और लालसा से उनकी आँखों में खास किस्म की तब्दीली होगई। उनका नितम्ब-भाग यानी कमर के पीछे का हिस्सा यद्यपि पहलेसे ही विशाल था ; तथापि जिस तरह वर्षाकाल बीतने के बाद नदी के किनारे की ज़मीन विशाल हो जाती है, उसी तरह और भी विशाल होगया । उनकी चाल यद्यपि स्वभावसे ही मन्दी थी, लेकिन अब मतवाले हाथी की तरह औरभी मन्दी होगई। सवेरे के समय जिस तरह विद्वान् आदमी की बुद्धि बढ़ जाती है, और गरमी की ऋतु में जिस तरह समुद्र की वेला बढ़ जाती है; उसी तरह गर्भावस्था में उन की लावण्य-लक्ष्मी बढ़ने लगी। यद्यपि उन्होंने त्रिलोकी के असाधारण गर्भको धारण कर रखा था; तथापि उन्हें जरा भी कष्ट या खेद न होता था ; क्योंकि गर्भ में रहनेवाले अर्हन्तों का ऐसा ही प्रभाव होता है। जिस तरह पृथ्वी के भीतरी भाग में अंकुर बढ़ते हैं; उसी तरह मरुदेवा माता के पेट में वह गर्भ भी, गुप्तरीति से, धीरे-धीरे बढ़ने लगा। जिस तरह शीतल जलमें हिम-मृत्तिका या बर्फ डालने से वह
औरभी शीतल हो जाता है ; उसी तरह गर्भके प्रभाव से, स्वामिनी मरुदेवा औरभी अधिक विश्ववत्सला या जगत् की प्यारी हो गई। गर्भमें आये हुए भगवान के प्रभाव से, युग्मधर्मी लोगों में, नाभिराजा अपने पिता से भी अधिक माननीय हो गये। शरद् ऋतु के योग या मेल से जिस तरह चन्द्रमा की