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आदिनाथ-चरित्र १५०
प्रथम पर्व पाचवा कुलकर-राजा। प्रसेनजित भी, अपने पिता की तरह, सब युगलियों का राजा हुआ। क्योंकि, महात्माओंके पुत्र बहुधा महात्मा ही होते हैं। जिस तरह कामात या कामी लोग लज्जा और मर्यादाका उल्लङ्घन करते हैं; उसी तरह उस समयके युगलिये भी 'हाकार और माकार' नीतिका उल्लङ्घन करने लगे। उस समय प्रसेनजित, अनाचार रूपी महाभूत को त्रस्त करने में मंत्राक्षरजैसी, तीसरी, धिक्कार नीति' को काममें लाने लगा। प्रयोगकुशल प्रसेनजित, जिस तरह त्रय अंकुश से हाथी का शासन करते हैं उसी तरह; तीन नीतियोंसे सब युगलियों का शासन करने लगा। इसी बीचमें चक्षुःकान्ताने .स्त्री-पुरुष रूपी युग्म सन्तान को जन्म दिया। साढ़े पांच सौ धनुष प्रमाण शरीरवाले, वे भी अनुक्रम से वृक्ष और उस की छाया की तरह साथसाथ बढ़ने लगे। वे दोनों युग्मधर्मि मरुदेव और श्रीकान्ताके नामसे लोक में प्रसिद्ध हुए। सुवर्ण को सी कान्तिवाला वह मरुदेव, अपनी प्रियंगुलता के समान रंगवाली प्रियासे उसी तरह शोभने लगा, जिस तरह नन्दन-वन की वृक्ष-श्रेणीसे कनकाचलमेरु शोभता है। देहावसान होनेपर, प्रसेनजित द्वीपकुमार में उत्पन्न हुआ और चक्षुःकान्ता देह त्यागकर नागकुमार में गई।
छठा और सातवा कुलकर । ... माता-पिता के लोकान्तारेत होनेपर, मरुदेव सब युगलियोंका