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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व कुल परम्पराके विपरीत मत चलो । सम्पत्तिकी तरह अपने गुणों को भी गुप्त और पोशीदा रखो । जो स्वभावसे कपटी और दुर्जन हैं, उनका संसर्ग त्याग दो। कपटहृदय वाले दुष्टोंकी संगति मत करो ; क्योंकि दुष्टोंका संसर्ग हड़किये कुत्तेके विषकी तरह काल योगसे विकारको प्राप्त होता है। बच्चे ! कोढ़ जिस तरह फैलनेसे शरीरको दूषित कर देता है ; उसी तरह तेरा मित्र अशोकदत्त ज़ियादा हेलमेल और परिचयसे तुझे दूषित कर देगा तेरे चरित्रको कलुषित कर देगा। यह मायावी गणिका–वेश्याकी तरह, मनमें और, वचनमें और एवं क्रिया और ही है। यह कहता कुछ है, करता कुछ है और इसके मनमें कुछ है। यह मन वचन और कर्ममें यकसा नहीं है।
सागरचन्द्रका जवाब। सेठ चन्दनदास इस प्रकार आदर पूर्वक उपदेश देकर चुप हो गया, तब सागरचन्द्र मनमें इस तरह विचार करने लगा:-'पिताजी जो मुझे इस तरहका उपदेश दे रहे हैं, इससे मालूम होता है कि, उनको प्रियदर्शना-सम्बन्धी वृत्तान्त ज्ञात हो गया है। मेरा मित्र अशोकदत्त पिताजीको सङ्गति करने योग्य नहीं जंचता। यह उसे मेरे सङ्ग रहनेके लायक नहीं समझते। इन्हें उसकी मुहबत से मेरे बिगड़ जानेका भय है। मनुष्यका भाग्य मन्द होनेसे ही, ऐसे सीख देने वाले गुरुजन नहीं होते। सौभाग्य वालोंको ही ऐसी सशिक्षा देने वाले गुरुजन मिलते हैं। भलेहीउनकी मरज़ी