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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व की गर्दन तोड़कर मणि को ले लेते हैं ; उसी तरह उसने एक बन्दीवान के हाथ से छुरी छीन ली। उसका ऐसा पराक्रम देखकर, सब बन्दीवान वहाँ से नौ दो ग्यारह हुए; क्योंकि जलती हुई आग को देखकर व्याघ्र भी भाग जाते हैं।' इस तरह कठियारे लोगों से आम्रलता छुड़ाने की तरह, सागरचन्द्र ने दुष्टों से प्रियदर्शना छुड़ाई। उस समय प्रियदर्शना विचार करने लगी“परोपकार करने के व्यसनी पुरुषों में मुख्य यह कौन हैं ? अहो ! मेरे सौभाग्य की सम्पत्ति से खिंचा हुआ यह पुरुष यहाँ आगया, यह बहुत अच्छा हुआ ! कामदेवके रूप को तिरस्कार करनेवाला यह पुरुष मेरा पति हो।" इस तरह के विचार करती हुई प्रियदर्शना अपने घर को चली गई। सागरचन्द भी प्रियदर्शना को अपने हृदय में बिठाकर, अपने मित्र अशोकदत्तके साथ अपने घर गया।
सागर के पिताका पुत्रको उपदेश देना। होते-होते यह बात उसके पिता चन्दनदासके कानों तक भी पहुँच गई। ऐसी बात किस तरह छिप सकती है ? चन्दनदासने यह हाल जानकर मन-ही-मन विचार किया-'लड़के का दिल प्रियदर्शना से लग गया है, उसे उससे मुहब्बत हो गई है। यह उचित ही है, क्योंकि राजहंस के साथ कमलिनी ही शोभा देती है। परन्तु सागरचन्द्र ने जो उद्भटपना किया वह ठीक नहीं। क्योंकि पराक्रमी होनेपर भी, वणिक लोगों को अपना पराक्रम प्रकाशित न करना चाहिये। फिर; सागर का स्वभाव सरल है।