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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र
तीर्थकर नाम कर्म का बन्धन ।
बारहवें भव की समाप्ति
__ इन बीस स्थानकों में से एक-एक पद का आराधन करना भी तीर्थङ्कर नाम-कर्म के बन्ध का कारण है। परन्तु वज्रनाभ भगवान् ने तो इन सब पदों का आराधन करके तीर्थङ्कर नामकर्म का बन्ध किया। बाहुमुनि ने साधओं को वैयावञ्च करने से चक्रवर्ती के भोग-फल को देनेवाला कर्म उपार्जन किया। तपस्वी महर्षियों की विश्रामणा करने वाले सुबाहु मुनि ने लोकोत्तर बाहुबल उपार्जन किया। तब वज्रनाभ मुनि ने कहा'अहो ! साधुओं की वैयावञ्च और विश्रामणा करने वाले ये बाहु
और सुबाहु मुनि धन्य हैं।' उनकी ऐसी प्रशंसा से पीठ और महापीठ मुनि विचार करने लगे-'जो उपकार करने वाले हैं, उन्हीं की यहाँ प्रशंसा होती है; अपन दोनों आगम शास्त्र के अध्ययन और ध्यान में लगे रहने से कुछ भी उपकार न कर सके, इसलिये अपनी प्रशंसा कौन करे ? अथवा सब लोग अपने काम करने वाले को ही ग्रहण करते हैं। इस तरह माया मिथ्यात्व से युक्त ईर्षा करने से बाँधे हुए दुष्कृत्य को आलोचन न करने से, उन्होंने स्त्री नाम कर्म-स्त्रीपने की प्राप्ति रूप कर्म उपार्जन किया। उन छहों महर्षियों ने अतिचार रहित और खड्ग की धारा के