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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र पिता का ही पदानुसरण करूँगा--पिताकी तरह दीक्षा लूंगा।' पीछे मानो एक दिल हो इस तरह, व्रत-ग्रहण में भी वाद करनेवाली श्रीमती के साथ-वह अपने लोहार्गल नगर में आया। वहाँ, राज्य के लोभ से, उसके पुत्रने धन के ज़ोर से मंत्रिमण्डल को अपने हाथ में कर लिया। जलके समानधन से कौन नहीं भेदा जा सकता ? सवेरे उठकर व्रत ग्रहण करना है और पुत्रको राज्य सौंपना है, यह चिन्ता करते-करते श्रीमती और राजा सो गये। उन सुख से सूते हुए दम्पति के मार डालने के लिए, राजपुत्र ने ज़हर का धूआँ किया। घर में लगी हुई आग की तरह, उसे कौन निवारण कर सकता है ? प्राण को खींचकर बाहर निकालनेवाले मांकड़े के जैसे, उस विष-धूप के धुएं के नाक में घुसने ले राजा, और रानी तत्काल मर गये।
सातवा और आठवा भवन
वे स्त्री-पुरुष वहाँ से देह छोड़कर, उत्तर कुरुक्षेत्र में युग्म रूप में पैदा हुए। 'एक चिन्ता में मरनेवालों की एकसी गति होती हैं।' इस क्षेत्र के योग्य आयुष्य को पूरी करके, वे मर गये और मरकर दोनों ही सौधर्म देवलोक में परस्पर प्रेमी देव हुए ।