________________
आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व
लगे। कितने ही आदमी श्रद्धा से अपनी गर्दन हिलाते हुए, उसमें लिखे हुए श्रीमत् अरहन्त के प्रत्येक बिम्ब का वर्णन करने लगे; कितने ही कला-कौशल-कुशल राहगीर उसे तेज़ नज़र से देखकर, रेखाओं की शुद्धि की बारम्बार तारीफ करने लगे और कितने ही लोग उस पट के अन्दर के काले, सफेद, पीले, नीले
और लाल रंगों से, सन्ध्या के बादलों के समान, बनाये हुए रंगों का वर्णन करने लगे। इसी मौके पर, यथार्थ नामवाले दुर्दर्शन राजा का दुर्दान्त नामका पुत्र वहाँ आ पहुंचा। वह एक क्षण तक पट को देखकर, बनावटी मूछा से ज़मीन पर गिर पड़ा
और फिर होश में आगया हो, इस तरह उठ बैठा। उसके उठने पर लोगों ने जब उससे उसके बेहोश होने का कारण पूछा, तब वह कपट-नाट्य करके अपना वृत्तान्त कहने लगाः- 'इस पटमें किसी ने मेरे पूर्व जन्म का वृत्तान्त लिखा है। इस के देखने से मुझे जाति-स्मरण-ज्ञान उत्पन्न हुआ है। यह मैं ललिताङ्ग देव हूँ और यह मेरी देवी स्वयंप्रभा है।' इस तरह उसमें जो-जो लिखा था, उसने उसी प्रमाण से कहा। इसके बाद पण्डिता ने कहा-'यदि यही बात है, तो इस पट में कौन-कौन स्थान हैं, अंगुली से बताओ।' दुर्दान्त ने कहा-'यह मेरु पर्वत है और यह पुण्डरीकिणी नदी है । 'फिर पण्डिता ने मुनिका नाम पूछा, तब उस ने कहा---'मुनिका नाम मैं भूल गया हूँ।' उसने फिर पूछा-'मंत्रीवर्ग से घिरे हुए इस राजा का नाम क्या है और यह तपस्वी कौन है, . यह बताओ। उसने कहा- 'मैं इन