________________
आदिनाथ चरित्र
प्रथम पर्व
करनेवाली उस राजबाला को यौवन प्राप्त हुआ । एक दिन, सन्ध्याकी अभ्रलेखा जिस तरह पर्वत पर चढ़ती है; उसी तरह वह अपने सर्वतोभद्र महल पर चढ़ी। उस समय, मनोरम नामक बाग़ीचेमें किसी मुनीश्वर को केवल - ज्ञान प्राप्त होने के कारण, वहाँ जानेवाले देवताओं पर उस की नज़र पड़ी। उन को देखते ही, मैंने पहले भी ऐसा देखा है, - ऐसा विचार करने वाली उस बालाको, रात के स्वप्न की तरह, पूर्व जन्म की बात याद आगई। मानो हृदय में उत्पन्न हुए पूर्व जन्म के ज्ञान का भार वहन न कर सकती हो, इस तरह वह बेहोश होकर ज़मीनपर गिर पड़ी। सखियों के चन्दन प्रभृति द्वारा उपचार करने से उसे होश आ गया । उठते ही वह अपने चित्तमें विचार करने लगी - "पूर्व जन्म में ललिताङ्ग देव नामक देव मेरे पति थे । उनका स्वर्ग से पतन हुआ है; परन्तु इस समय वे कहाँ हैं, इस बात की ख़बर न लगने से मुझे दुःख हो रहा है मेरे हृदय पर उन्हीं का प्रतिबिम्ब या अक्स पड़ा हुआ है हृदयेश्वर हैं; क्योंकि कपूर के बासन में नमक कौन रखता है ? अगर मेरे प्राणपति मुझसे बातचीत न करें, तो मेरा औरों से बातचीत करना वृथा है। ऐसा विचार करके, उसने मौन धारण कर लिया--बोलना छोड़ दिया ।
।
और वेही मेरे
६२
श्रीमती के पाणिग्रहण के उपाय ।
जब वह न बोली, तब सखियाँ दैवदोष की शङ्का से तन्त्रमन्त्र