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________________ आदिनाथ चरित्र प्रथम पर्व ; तो क्या दुःख है ? तुझ से भी अधिक दुःखी जीव हैं; उनका हाल सुन | जो अपने दुष्कर्मों के फल-स्वरूप नरक -गति में पैदा होते हैं, उनमें से कितनों ही के शरीर भेदे जाते हैं और कितनों ही के अङ्ग छेदे जाते हैं और कितनों ही के सिर धड़ से अलग किये जाते हैं । उनमें से कितनेही, नरक -गति में, परमाधामी I असुरों द्वारा, तिलों की तरह कोल्हू में पेरे जाते हैं कितने ही लकड़ी की तरह काटे जाते हैं और कितने ही लोहेके बर्तनोंकी तरह कूटे जाते हैं । वे असुर कितनों ही को शूलों की शय्या पर सुलाते हैं, कितनों ही को कपड़ों की तरह पत्थर की शिलाओं पर पछाड़ते हैं और कितनों ही के साग की तरह टुकड़े-टुकड़े करते हैं। उन नारकीय जीवों के शरीर, वैक्रिय होने के कारण, तुरत मिल जाते हैं और वे परमाधार्मिक असुर उन्हें फिर पहले की तरह ही तकलीफें देते हैं। इस तरह दुःखों को भोगने वाले वे प्राणी करुण स्वर से चीखते-चिल्लाते हैं । वहाँ प्यासे जीवों को बारम्बार सीसे का रस पिलाया जाता है और छाया चाहने वाले प्राणी, तलवार के से पत्तों वाले, असिपत्र नामक वृक्ष के नीचे बिठाये जाते हैं। अपने पूर्वजन्म के कर्मों का स्मरण करते हुए, वे प्राणी एक मुहूर्त्त - भर भी बिना वेदना के रह नहीं सकते । हे बच्ची ! उन नपुसंक नारकियों को जो-जो दुःख और कष्ट झेलने पड़ते है, उनका वर्णन करनेसे भी मनुष्य को दुःख होता है । इन नारकियों की बात तो दूर रही, प्रत्यक्ष दिखाई देने ८४
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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