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जीवनकी झांकी
'जीवनकी है अकथ कहानी ;
है किन देखी; है किन जानी ? मधुर-मधुर अरु विपम-विपम-सी सरस - विरस अरु सुखद-दुखद भी ; सित-तम-पक्ष विलोके ना जी , निरखे नित ही वह मनमानी ;
किन यह जानी प्रकृति निशानी ?
किन यह जानी, किन यह मानी ?? नभमें तारा झिलमिल चमके ; चातक चन्द्र चाँदनी मोहे , रवि शिशु उपा-अंकमें सोहे , गंगकी धार वहे नित पानी !
किन यह ध्रुवलीला पहिचानी ?
किन है जानी, किन है मानी ?? जल-बुद-बुद-सम विभव प्याली; क्यों पीवे तू यह मतवाली ? सुव न रहे वुव पिय विसरावे ! विरह विपय चहुँ गति अकुलानी !!
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