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देख मुझको व्यथित मनसे हँस रहे तारे गगनसे ;
वन्धु मुझपर हँस रहे हैं देखकर लाचार ।
देखकर मेरा पतन यह
हृदयका मेरे रुदन यह ( कह दिया आलोचकोंने)
जो कहाते विश्व-विजयी, आज उनकी हार ।
था क्या आधार ?
गीत
छुप रहा जीवन तिमिरमे । सजनि, ये क्षण-क्षण सिमटकर मिल रहे धूमिल प्रहरमें । छुप रहा०
छुप रही लाली क्षितिजमें, छुप रहा दिनकर गगनसे, और छुपने जा रहे उन्मुक्त खगगण भग्न मनसे, जो रहा अब तक यहाँ, सव वह गया इक ही लहरमें । छुप रहा०
जव हृदयको गीत भाया, भाव सब जिसपर लुटाया, और अव तक ज़िन्दगीमें जो, सखे, था प्यार पाया, शोक वह कुछ भी नहीं, सव रह गया पिछले प्रहरमें । छुप रहा ०
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