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श्री छन्नोदेवी, लहरपुर
जागरण
( १ ) उठो क्रान्तिका गान हो रहा, निद्राका यह राग नहीं , मची रक्तकी होली, देखो, यह वसन्तका फाग नहीं ; भीष्म ज्वालकी ये चिनगारी समझो पद्म-पराग नहीं , यह मरणस्थल युद्धस्थल है, कुसुमित सुरभित वाग नहीं ; देखो उवर, व्योममें, कैसे विपदाओंके वादल हैं, शान्तिपूर्ण अब रात नहीं, दुर्दिनके वजते पायल हैं ?
(२) देखो यह अडोल परणीवर कैसा थरथर काँप रहा , देखो, रक्तिम देह लिये रवि अस्ताचलको भाग रहा ; हो उद्दण्ड प्रचण्ड आलसी मारुत भी फुकार रही, उन रूप घर घरा अग्निके, आज उगल अंगार रही ; सुनो, विश्व-विद्रोही बनकर विप्लवके हैं गाते गान , • महाप्रलयका आवाहन है 'उठो उठो, हे श्रेष्ठ महान् !'
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