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मूक याचना
देव, में बन जाऊँ अज्ञात ।
शलभ पंत्रोंको छू छू,
उन्हें कर-कर अमरत्व प्रदान
दीप-लीके
प्रेमी मुखपर,
सदा करवाऊँ जीवनदान |
उसीके सुखकी मंजुल छवि, वनी इठलाऊ निगा प्रभात । देव, में बन जाऊँ ग्रज्ञात ।
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किसीके आगापथकी धूल बनूं, पथपर छितरा जाऊँ, मिलन वेलापर प्रेयसिकी, दूर जगमें विखरा ग्राऊँ ।
विरहकी उत्सुकतामें डूब,
हँसूं, झूमूं पुलकित मधुगात । देव, में वन जाऊँ अज्ञात ।
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