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परिचय
हृदय हिमालय हिलेगा परिचय सुन पूछो मत कैसी उर-वेदनाका भार हूँ ; विश्वकी समस्त सम्पदाएं जिससे हैं दूर
क्रूर उस जगका तिरस्कृत में प्यार हूँ । स्वप्निल जगत् नव्य तन्द्रिल बना ही रहा
केन्द्र करुणाका वह फेनिल असार हूँ ; विग्रह विरोव अवहेलना परावृत हूँ चाहत हृदयका विकट हाहाकार हूँ |१
नित्य मन मन्दिरके प्रांगणमें खेल रही
पूरी जो न हो सकेगी ऐसी एक चाह है ; खण्ड-खण्ड हो चुके मनोरथके सेतु जहाँ
चाह हीन घोर दुःख सागर अथाह हूँ । प्रतिरुद्ध हेतु हुए विफल प्रयत्न ऐसा
अविरल रूप अश्रु-धाराका प्रवाह हूँ ; सुनना सनकता विचारना है कोसों दूर, ऐसे बान्त उरकी में कठिन कराह हूँ |२
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