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आत्म-वेदन
निराशामें बैठे मन मार,
किया करते हो किसका ध्यान ; वनाकर पागल जैसा वेष .
किया क्यों सुन्दर तन अति म्लान ? अरे, तुम हो उत्कृष्ट विभूति,
प्रणय-तन्त्रीकी सुन्दर तान ; मृपा सुख-स्वप्नोंका छवि-धाम, .
किया क्यों मायाका परिधान ?
लिया क्या छीन तुम्हारा प्यार,
किसी निर्मम निर्दयने आज ; वनाया कातर 'किसने आज
दूसरोंके हो क्यों मुंहताज ? खोल निज अन्तरदृष्टि महान्,
त्याग दुनियाके कार्यकलाप ; खोजता फिरता है तू जिसे,
हृदयमें छिपा हुआ है 'आप' ।
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