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मैं चाहती थी, इस पुस्तकको अपने कवि-कलाकारोंके चित्रोंसे सजाती । और हर प्रकारसे इसे सुन्दरतम बनाती; पर मुझे बहुतसे कवियोंके चित्र प्राप्त न हो सके और जिनके चित्र आये भी उनमेसे अधिकांश ऐसे थे जिनके सुन्दरतर ब्लॉक नहीं बन सकते थे। भविष्यमें सम्भव हुआ तो इन कमियोंको दूर करनेका अवश्य प्रयत्न करूंगी। __ मुझे खेद है कि मैं अनेक कृपालु कवि-कवियित्रियोंकी रचनाएँ जो इस संग्रहके लिए प्राप्त हुई थीं, सम्मिलित नहीं कर पाई। मै उनसे क्षमाप्रार्थी हूँ। मेरा विश्वास है कि अगले संस्करण तक उनकी नई रचनाएँ और भी अधिक सुन्दर होंगी और तव तक मुझमें भी सम्पादनकी क्षमता बढ़ सकेगी। ___ इस पुस्तकमें जिन साहित्यिकोंकी रचनाएँ जा रही हैं, उनकी कृपा और सहयोगके लिए मैं हृदयसे आभारी हूँ। भाई कल्याणकुमार 'शशि'ने कई कवियोंके पास स्वयं पत्र लिखकर उनसे कविताएँ भिजवाई, इसके लिए मैं आभारी हूँ। पंडित अयोध्याप्रसादजी गोयलीयने उचित सुझाव दिये हैं और 'इलाहावाद लॉ जर्नल प्रेस'के सुयोग्य व्यवस्थापक श्री कृष्णप्रसाद दरने इसके मुद्रणमें हर तरहसे सहयोग दिया है। अतः वे दोनों धन्यवादके पात्र हैं। ___ अव, रह गये श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन ! उनके विपयमें जो कहना चाहती हूँ, उसके उपयुक्त शब्द नहीं सूझ रहे हैं। वह साहित्यिक और कवि है; अपनी भावुक कल्पना से समझ लेंगे कि मैने क्या कहा और क्या नहीं कहा । वस।
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डालमिया नगर } जून १९४४ ।
रमा जैन