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जागृति - गीत
जाग जीवनके करुण, वह एक अद्भुत राग ।
'बुन उठे ध्वनि सुन जगतकी चेतना उर मीन
रह सके बैठी भले स्थिर तालपर यह तो न कर उठे सहना थिरकती एक ताण्डवनृत्य
और यह हो जाय तत्क्षण वह प्रलय-सा कृत्य
आप या वरदान प्रतिक्षण फूंकते हों प्राग ।
ग्रा भरे उत्साह तनमें और मनमें रोप
टूट जाये ग्राज चिरको नीद आये होग देख लें दृग खोल अव क्या-क्या रहा है शेप
प क्या है, दैन्य, बन्धन, श्रीर दारुण क्लेश
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हूक कर ज्वाला मिटा दे यह अमिटसे दाग़ ।
फूँक दे वह प्राण मृत-सी देहमें श्रविराम
स्वयं इस आरामका मनमें न लेवें नाम उठे जड़तामें निरन्तर भयानक तूफ़ान
और पशुतासे पुरुष पा जाय यह परित्राण
खेल ले निज शम्भु शोणितसे विहमि हँसि फाग ; जाग जीवनके करुण वह एक अश्रुत राग ।
परिवर्तनका दास
से लिखा जा रहा प्रतिक्षण है इतिका इतिहास ;
दुखमें झलक रहा है सुखका वह मादक मधुमास ।
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