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मुझ न कविता लिखना आता
मुझे न कविता लिखना आता , जो कुछ भी लिखता हूँ उससे केवल अपना मन बहलाता ।
मुझे न कविता लिखना आता ॥ कवि होनेके लिए चाहिए जीवनमें कुछ लापरवाही , घनी हो रही मेरे उरमें चिन्ताओंकी काली स्याही , मुझ जैसे पत्थरसे है फिर क्या कोमल कविताका नाता?
मुझे न कविता लिखना आता ॥
प्रखर दृष्टि कविकी होती है प्रकृति उसे प्यारी लगती है , पाता है आनन्द शून्यमें क्योंकि वहाँ प्रतिभा जगती है, हाहाकारोंका मैं वन्दी क्षण-भरको भी चैन न पाता।
__ मुझे न कविता लिखना आता ॥ धुंधले दीपकके प्रकाशमें लिखी गई मेरी कविताएं, क्या प्रकाश देंगी जनताको इसको जरा ध्यानमें लायें, मैं इन सबको सोच-सोचकर मनमें हूँ निराश हो जाता।
मुझे न कविता लिखना आता ॥ कविता क्या है अब तक मैंने इसे न अपने गले उतारा , विमुख दिशाकी और वह रही है मेरे जीवनको धारा , किन्तु प्रेम कुछ कवितासे है अतः उसे जीवनमें लाता ।
मुझे न कविता लिखना आता ॥