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जैन - रत्नसार
दिवस चरिम दुविहार पच्चक्खाण
दिवस चरिमं पच्चक्खाई, दुविहंपि आहारं असणं, खाइमं, अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिबत्तियागारेणं, बोसिरड् । भवचरिम पच्चक्खाण
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भव चरिमं पच्चक्खाई चउव्विपि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि वत्तियागारेण वोसिरइ | गठिसहिअ मुट्ठिसहिअ और अंगुट्टिसहिअ आदि अभिग्रह
पच्चक्खाण
गंठि सहिअं मुट्ठि सहिअं अंगुट्ठि सहिअं वा पच्चक्खाई, अण्णत्थणा भोगेणं, सहसा गारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि वत्तियागारेणं, बोसिर । धारणा पच्चक्खाण
धारणा प्रमाणं पञ्चक्खाई अण्णत्थाणाभोगेणं, सहसागारेणं, महन्तरागारेणं, सव्वसमा हिवत्तिआगारेणं, बोसिरइ ।
पच्चक्खाणों की आगार संख्या
दो चेव णमुक्कारो आगारा छच्च हुँति पोरिसिए ।
सत्तेव य पुरिमड्ढे, एगासणयम्मि' अड्डे व ॥ १॥ सत्ते गट्ठाणस्स उ अट्ठेव य, अंबिलम्मि आगारा ।
पंचेव अभत्तट्ठे, छप्पाणे चरिम चत्तारि ॥२॥
पंच चउरो अभिग्गहे, णिव्बीए अट्ठ णव य आगारा ।
अप्पावरणे पंच चउ, हवंति सेसेसु चत्तारि ॥३॥
१ इस पच्चकखाण में पांचवा, चोलपट्टागारेणं, चोलपट्ट का आगार तथा 'पारिट्ठावणिया गारेण" यह दो आगार साधुओं के लिये होते हैं।
२ णमुकारसी में दो, पोरिसी में छः पुरिमढ मे सात, एगासण में आठ, एगलठाण मे सात, आयम्विल में आठ, उपवास में पांच, पाणहार में छह, अभिग्रह में पांच, णिवी में आठ तथा नौ आगार होते हैं। अल्पावरण और अन्त्यसमाथि पच्चक्खाणके पांच, शेप सभी पच्चक्खाणों में चार आगार होते है ।