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[ २५ ] ये नवपद ओली शाश्वत अट्ठाई में कही जाती है। अतएव बड़ों की और सूत्रों की आज्ञा मानते हुए इस अट्ठाई में नवपद जी की ओली विधि सहित अवश्य करनी चाहिये (विधि प्रकरण में उक्त विधि दे दी गयी हैं। पाठक गण देख लेवें। )
इसकी प्रथा को श्री श्रुत केवली भद्रबाहु स्वामी जी ने विधि वाद सूत्र से उद्भत कर भव्य जीवों को अनंत सुख की प्राप्ति के लिये प्रसिद्ध की है। अतएव ये तप अवश्य आदरणीय है। ऐसा न कर जो पुरुष कुयुक्ति एवं अपनी कुबुद्धि से इसका खण्डन करते हैं उनको चौरासी लाख जीव योनियों में अनंत काल तक भ्रमण करना पड़ता है। ____ भगवान् महावीर ने स्वयं कहा है कि हे गौतम ! सर्वक्ष के वचन सूत्रों में हैं और जो भी उन सूत्रों के अर्थों को तोड़ कर नये अर्थों की प्ररूपणा करते है वह अनंत संसारी होंगे। सूत्र किसको कहते हैं:--
सुत्त गण हर रइयं, तहेव पत्तय बुद्धि रइयं च ।
सुयं केवली णा रइयं, अभिण्ण दस पुग्विणा रइयं ।। अर्थात् गणधरों के रचे हुए, प्रत्येक बुद्ध के रचे हुए, श्रुत केवली चौदह पूर्व धारियों के रचे हुए और सम्पूर्ण दश पूर्वधारी के रचे हुए को सूत्र की संज्ञा दी है।
श्री वीर जन्म कल्याणक पर्व चैत्र सुदि त्रयोदशी के दिन शासनाधिपति भगवान् महावीर स्वामी का जन्म हुआ, अतएव इस दिन जलयात्रादि विधि के अनुसार भगवान् के सम्पूर्ण जन्म कल्याणक के महोत्सव करने चाहिये। अगर इतना न बन सके तो भगवान् के च्यवन कल्याणक से लेकर निर्वाण कल्याणक पर्यंत वर्ष में जिस दिन जो कल्याणक हो, उसी का महोत्सव करना चाहिये। इससे धर्म का उद्योत होता है। सकल संघ में शांति एवं आनंद रहता है।
वीर चरित्र आज से.लगभग ढाई हज़ार वर्ष पहले जब भगवान महावीर का जन्म नहीं हुआ था, भारत की सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थिति ऐसी थी जो एक विशिष्ट आदर्श की अपेक्षा रखती थी। देश मे शूद्रों के साथ बड़ी निर्दयता का व्यवहार किया जाता था। उन्हें ज्ञान, ध्यान, शास्त्र अध्ययन और मोक्ष प्राप्ति के अधिकारों से वंचित समझा जाता था। उनके पास खड़ा होना भी पाप समझा जाता था। हां, जिन शूद्रों से अपना निजि काम लेते थे उन्हें तो हर कोई छूता था, लेकिन जो शूद्र और चंडाल निविचिकित्स भाव से घृणोत्पादक जीवन दशाओं में भी लोक की सेवा करते थे उन्हें अछूत कह कर अवनति के गढ़े में डाल दिया गया था। यज्ञादिकों में अनंत पशुओं का होम किया जाता था। लोग धर्म के असली अर्थ को भूल कर आडम्बर को ही धर्म मान बैठे थे। प्राह्मण तरह तरह की तामसिक तपस्याएं करते थे और सर्वेसर्वा माने जाते थे। मास का सर्वत्र प्रचार था। ऐसी विकट परिस्थिति मे भगवान महावीर का जन्म हुआ।
ईसवी की ७ वीं शताब्दी के पूर्व विहार प्रान्त में लच्छवाड़ा क्षत्रियों का राज संघ प्रसिद्ध था। इस संघ मे आस पास के क्षत्रियों के प्रतिनिधि सम्मिलित थे और वे मिल कर राज व्यवस्था करते थे। उन क्षत्रियों में कुण्ड ग्राम के क्षत्रिय भी शामिल थे। उनके प्रमुख राजा सिद्धार्थ थ। उनकी पट्टरानी त्रिशला को पावन कोख से चैत्र सुदि त्रयोदशी को भगवान का जन्म हुआ। भगवान् के एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहिन थी। बड़े भाई का नाम नंदीवधन एवं बहिन का नाम सुनंदा था।