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पूजनप्र
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जन-रत्नसार समूहो। णासेउ सयलदुरिअं, भविआणं भत्ति जुत्ताणं ॥२॥ वीसा पणयाला विय, तीसा पणहत्तरी जिणवरिंदा । गह भूअ रक्ख साइणि, घोरुवसग्गं पणासंतु ॥३॥ सत्तरि पणतीसावि य, सही पंचेव जिणगणो एसो । वाहिजलजलणहरिकरि, चौरारिमहाभयं हरउ ॥४॥ पणपण्णा य दसेव य, पणहि तह य चेव चालीसा । रक्खंतु मे सरीरं, देवासुर पणमिआ सिद्धा ॥५॥ ॐ हरहुं हः सरसुं सः हरहुं हः तह य चेव सरसुं सः । आलिहिय णाम गन्भ, चक्कं किर सव्वओ भदं ॥६॥ ॐ रोहिणि पण्णत्ती, वञ्जसिखला तह य वज्ज अंकुसिया । चक्केसरि गरदत्ता, काली महाकालि तह गोरी ॥७॥ गंधारी
महज्जाला, माणवि वइस्ट तह य अच्छुत्ता | माणसि महामाणसिआ, * विजा देवीओ रक्खंतु ॥८॥ पंचदसकम्मभूमीसु, उप्पण्णं सत्तरी जिणाण
सयं । विविहरयणाइवण्णो, वसोहिअं हरउ दुरिआई ॥९|| चउतीस अइसयजुआ, अट्ठ महापाडि हेर कय सोहा । तित्थयरा गयमोहा, झाए अब्बा पयत्तेणं ॥१०॥ ॐ वरकणयसंखविदुम, मरगयघणसण्णिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूइअं वंदे स्वाहा ॥११॥ ॐ भवणवइ वाणवंतर, जोइसवासी विमाणवासी अ । जे केवि दुढ देवा, ते सव्वे उवसमंतु ममं स्वाहा। ॥१२॥ चंदणकप्पूरेणं, फलए लिहिउण खालिअं पी। एगंतराइगहभूम, साइणिभूअं पणासेई ॥१३॥ इअ सत्तरिसयं जंतं, सम्मं मंतं दुवारि पडिलिहिअं । दुरिआरि विजयवंतं, णिभंतं णिचमच्चेह ॥१४॥
दोसावहार स्तोत्र दोसावहारदक्खो, णालीयायर विया सिगोपसरो । रयणत्तयस्सजणओ, पासजिणो जयउ जयचक्खू ॥१॥ कयकुवलय पडिवाहो, हरणं कियविग्गही कलाणिलओ । विहियार विंद महणी, दियराओ जयउ पास जिणी ॥२॥
* एक सौ सत्तर तीर्थंकरों का प्रमाण पांच महाविदह में १६० विजय हैं उनमें एक एक इस तरह १६० पांच भरतमे और पांच एरवतक्षेत्र में इस तरह १७० तीर्थकर एक समय में विचरण करते हैं। देवचन्दजी महाराज ने भी स्तोत्र पूजा में लिखा है। मुंदर मय इगसत्तार तित्थंकर इक समय विहरंत ।
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