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स्तोत्र-विभाग किण्णरोरग णमंसिअं । देव कोडि सय संथुअं, समण संघ परिवंदिरं ॥२०॥ सुमुहं अभयं अणहं, अश्यं अरु। अजिअं अजिअं पयओ पणमे ॥२१॥ (विजुविलसिअं) आगया वर विमाण दिव्व कणग रह तुरय पहकर सएहिं हुलिअं । ससंभमो अरण खुभिअ लुलिअ चल कुण्डलं गय किरीड सोहंत मउलि माला ॥२२॥ ( वेड्डओ ) जं सुर संघा सासुर संघा वेर । विउत्ता भत्ति सुजुत्ता, आयर भूसिअ संभम पिंडिअ सुटु सुविम्हिअ सव्व बलोघा । उत्तम कंचण रयण परूविअ भासुर भूसण भासुरि अंगा, गाय समोणय भत्ति वसागय पंजलि पेसिअ सीस पणामा ॥२३॥ ( रयणमाला) वंदिऊण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेव य पुणो पयाहिणं । पणमिऊण य जिणं सुरासुरा, पमुइया स भवणाई तो गया ॥२४॥ (खित्तयं) तं महामुणि महंपि पंजली, राग दोष भय मोह विजअं। देव दाणव परिंद वंदिअं, संति मुत्तम महातवं णमे ॥२५॥ (खित्तयं ) अंबरंतर वियारणिआहिं, ललिअ हंस बहू गामिणिआहिं । पीण सोणि स्थण सालिणिआहि, सकल कमल दल लोअणिआहिं॥२६॥ (दीवयं) पीण णिरंतर थण भर विणमिअ गायलयाहिं, मणि कंचण पसि दिल मेहल सोहिअ सोणि तडाहिं । वर खिखिणि णेउर सतिलय वलय विभूसणियाहिं, रइकर चउर मणोहर सुंदर दंसणियाहिं ॥२७॥ ( चित्तक्खरा ) देव सुन्दरीहिं पाय वन्दिआहिं, वंदिआ जस्स ते सुविक्कमा कमा अप्पणो णिडालएहि मंडणोदुण पगारएहिं केहिं केहिं वि अवंग तिलय पत्त लेह णामएहिं चिल्लएहिं संगयंगयाहिं, भत्ति सण्णिविट्ठ वंदणा गयाहि हुँति ते वंदिआ पुणो पुणो ॥२८॥ ( णारायओ) तमहं जिणचंद, अजिजिअ मोहं । धुअ सव्व किलेसं, पयओ पणमामि ॥ २९॥ (णंदिअयं ) थुअवंदिअस्सा रिसि गण देव गणेहिं, तो देव बहूहिं पयओ पणमिअस्सा जस्स जगुत्तम सासणअस्सा, भत्तिवसागय पिंडिअआहिं । देव वरच्छरसा वहुआहिं, सुरवर रइ गुण पंडिआहिं ॥३०॥ ( भासुरयं) । वंस सद्द तंति ताल मेलिए, तिउक्खराभिराम सद्द मीसए कइ अ, सुइ
समाणणे असुद्ध सज्ज गीअ पाय जाल घंटिआहिं, वलय मेहलाकलावणे
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