________________
स्तुति-विभाग
६१३
प्रणमो, पाय युगल अरविन्द || १ || अष्टापद चम्पा पावापुर शुभ ठाण । आदिम बारम जिण चउवीसम जिण भाण ॥ अजितादिक वीसे पुहता शिवपुर वास । सम्मेत सिखर पर प्रणम् अधिक उल्हास ॥२॥ जिनवर मुख हुँती सुणि त्रिपदी ततकाल । गणधरना गूंथ्या द्वादश अंग विशाल ॥ नय भंग पदारथ सत सत्त नव तत्थ । भवियणने तारे सायर जिम वोहित्य ||३|| चक्केसरि अम्बा पउमा देवी परतक्ष | श्री संघ मनोरथ पूरे वा सुर वृक्ष || ध्यावे सुख पावे श्री जिन लाभ सूरीश | जिनवर सुप्रसादे आस फले सुजगीश ||४|
श्री पार्श्व जिन स्तुति
सम दमोत्तम वस्तु महापणं, सकल केवल निर्मल सद्गुणं । नगर जेसलमेर विभूषणं, भजति पार्श्व जिनंगति दूषणं ॥१॥ सुर नरेश्वर नम्र पदाम्बुजः, स्मर महीरुह भंग मतंगजा । सकल तीर्थकराः सुखकारका, इह जयंतु जगज्जन तारकाः ॥ २॥ श्रयति यः सुकृति जिन शासनं, विपुल मंगल केलि विभासनम् । प्रबल पुण्य रमोदय धारिका, फलति तस्य मनोरथ मालिका ॥३॥ विकट संकट कोटि विनाशिनी, जिन मताश्रित सौख्य विकाशिनी । नर नरेश्वर किन्नर सेविता, जयतु सा जिन शासन देवता ॥४॥
श्री पार्श्व जिन स्तुति
अश्वसेन नरेसर, वामादेवी नन्द । नव कर तनु निरुपम, नील वरण सुखकन्द || अहि लञ्छन सेवित, पउमावइ धरणिंद । प्रह उठी प्रणमूं, नित प्रति पास जिणंद ॥१॥ कुलगिरि वेयढइ, कणयाचल अभिराम | मानुषोत्तर नंदी रुचक, कुंडल सुख ठाम ॥ भुवणेसर व्यंतर, जोइस विमाणी नाम । वत्र्त्तेते जिणवर, पूरो मुझ मन काम ||२॥ जिहां अंग इग्यारे, बार उपांग छ छेद । दश पयन्ना दाख्या, मूल सूत्र चउभेद ॥ जिन आगम षट् द्रव्य, सप्त पदारथ जुत्त । सांभली सरद्दहतां, छूटे कर्म तुरन्त ॥३॥ पउमावई देवी, पार्श्व यक्ष परतक्ष । सहु संघना संकट, दूर करे
Jotel Kotoctects tonto tonteroto