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सूत्र विभाग
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अतिचार पक्खी दिवसमें सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया कर मिच्छामि दुक्कडं ।
दशमें देसावगासिकव्रत के पांच अतिचार — 'आणवणे पेसवणे.'आणवणप्पओगे पेसवणप्पओगे सहाणुवाई रूवाणुबाई बहियापुग्गलक्खेवे । नियमित भूमि में बाहर से वस्तु मंगवाई । अपने पास से अन्यत्र भिजवाई खूंखारा आदि शब्द कर, रूप दिखा या कङ्कर आदि फेंक कर अपना होना मालूम कराया । इत्यादि दशमें देसावगासिकवत सम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्खी दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया कर मिच्छामि दुक्कडं ।
ग्यारहवें पौषधोपवासव्रत के पांच अतिचार - 'संथारुच्चार विहि. ' अप्पडिलेहिअ, दुप्पडिलेहिअ सिज्जासंथारए । अप्पडिले हिय दुप्पडिलेहिय उच्चार पासवण भूमि । पौषध लेकर सोने की जगह बिना पूजे प्रमाजें सोया, स्थण्डिल आदि की भूमि अच्छी तरह शोधी नहीं । लघुनीति (पेशाब), बड़ी नीति ( टट्टी जाना ) करने या परठने के समय " अणुजाणह जस्सग्गो" न कहा । परठे बाद तीन बार 'वोसिरे' न कहा । जिन मन्दिर और उपाश्रय में प्रवेश करते हुए 'णिसीहि' और बाहर निकलते 'आवरसहि' तीन बार न कही । वस्त्र आदि उपधि की पडिलेहणा न की । पृथ्वीकाय, अप्पकाय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय का संघट्टन हुआ । संथारा पोरिसी पढ़नी भुलाई । बिना संथारे जमीन पर सोया । पोरिसी में नींद ली, पारना आदि की चिन्ता की । समय पर देव - वन्दन न किया । प्रतिक्रमण न किया । पौषध देरी से लिया और जल्दी पारा, पर्वतिथीको पोसह न लिया । इत्यादि ग्यारहवें पौषधत्रत सम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्खी, दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया कर मिच्छामि दुक्कडं ।
बारहवें अतिथि सम्विभाग व्रत के पांच अतिचार — 'सचित्ते निक्खिवणे० ' सचित्त वस्तु के संघट्ट वाला अकल्पनीय आहार पानी साधू साध्वी
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