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जैन-रनसार एह ध्यान धरंता लहिये, अविचल पद अविनाशी जी । ते सघला जिन नायक नमिये, जिन ए नित्य प्रकाशी जी ॥२॥ आसू मास मनोहर तिम वलि चैत्रक मास जगीशें जी । उजवाली सातम थी करिये, नव आम्बिल नव दिवस जी ॥ तेर सहस बलि गुणिये गुणणूं, नवपद केरो सारो जी। इणपरि निर्मल तप आदरिये आगम साख उदारी जी ॥३॥ विमल कमल दल लोयण सुन्दर, श्री चक्केसरि देवी जी । नवपद सेवक भविजन केरो, विन्न हरो सुर सेवी जी ॥ श्री खरतर गच्छ नायक सद्गुरु, श्री जिन भक्ति मुर्णिदा जी। तासु पसायें इणपरि पभणे, श्री जिनलाभ सुरिंदा जी ॥ell
श्री आदि जिन स्तुति प्रणम परम पुरुष परमेसर, परमातम पद धारी जी। प्रथम जिनेसर प्रथम नरेसर, प्रथम परम उपकारी जी ॥ योगीसर जिनराज जगत गुरु, सहजानन्द स्वरूपो जी। रिपम जिनेसर लोक दिनेसर, आतम संपद भूपो जी ॥१॥ पांच भरत वलि पांच ऐरवत, पंच विदेह मझारो जी। काल अतीत अनंता जिनवर, पाम्या शिवपद सारो जी ॥ वलिय अनागत काल अनंता, थास्ये इणही प्रकारो जी। संप्रति काले वीस विदेहे, बंद बहु सुखकारी जी ॥२॥ अरथे श्री जिनराज बखाण्या, गंध्या श्री गणधारी जी । अंग दुवालस अतिसय उत्तम, अरथ विविध विस्तारो जी ॥ गुण परजय नय भंग प्रमाणे, जिहां पट् द्रव्य विचारों जी । ते आगम मन शुद्ध आराध्या, तूटे कर्म विकारो जी ॥३॥ सुन्दर रूप अनूपम सोहे, श्री चक्केसरि देवी जी । श्री जिन शासन सानिध करणी, दो बंछित नित मेवी जी ॥ कल्याण कारण जेहनी सेवा, संघ सकल सुखकंदा जी । श्री जिनचंद्र मुर्णिद पसाये, कहे जिन हर्प सुरिंदा जी ॥४॥
श्री अजित जिन स्तुति । विश्व नायक लायक जित शत्रु विजयानंद। पय जुग निन प्रणने देव अने देवंद ॥ भव लहरी गहरी सब मन धरी अमंद। श्री मुग्न नहीं बंदी अजित जिणंद ॥१॥ आठ प्रातिहाग्ज अतिशय बलि चीनीन । दिल. .
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