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जैन-रसार श्री जिन कुशल सूरि स्तवन कुशल गुरु कुशल करो भरपूर, सेवक जन मन वंछित पूरण, समरयां होत हजूर ॥ कु० १ ॥ परम दयाल प्रेमरस पूरण, अशुभ करम भये दुर । * संघ उदय कर सद्गुरु मेरा, विनवे श्री जिनचन्द सूर ॥ कु० २ ॥
श्री जिन कुशल सूरि स्तवन । आयो आयो जी समरंता दादा जी आयो। संकट देख सेवक के सद्गुरु देश उरतें ध्यायो जी ॥ स. १॥ दादा वरसे मेंहनी रात अंधेरी, वाय पिण सबलो वायो । पंच नदी हम बैठे वेडी, दरीये चित्त डरायो जी ॥ स० २॥ दादा उच्च भणी पोहचावण आयो, खरतर संघ सवायो। समय सुन्दर कहे कुशल कुशल गुरु, परमानन्द मुख पायो जी ॥ स. ३॥
कुशल गुरु स्तवन ( सद्गुरु करुणा निधान, राखो लाज मेरी) जय जय जिन कुशल सूरि, समरत हाजर हजूर । महकत जिम यश कपूर, महिमा जग तेरी ॥१॥ जहां पर तुम हो दयाल, छिन में करदो निहाल । संकट को चूर देवो, दौलत की ढेरी ॥२॥ तुम हो सुरतरु समान, बंछित फल देवो दान । सेवक को दीन जान, मेटो भव फेरी ॥३॥ शरण आय की राखो लाज, वंछित सब पूरो काज । हरख चन्द शरण आयो, महिमा सुन तेरी ॥४॥
कुशल गुरु स्तवन कैसे कैसे अवसर में गुरु, राखी लाज हमारी। मोकं सफल भरोसा तेरा, चन्द सूरि पट धारी ॥१॥ तुम बिन और न कोई मेरे, इस युग में हितकारी । मेरा जीवन हाथ तुम्हारे, देखो आप विचारी ॥२॥ आगे तो। | कई वेर हमारी, चिन्ता दुर निवारी । अबके बिरियां भूल मति जावो, सद्गुरु पर उपकारी ॥३॥ अबके आज लाज गूजर की, रखिये गुरु जस धारी । मेरे श्री जिन कुशल सुरिन्द का, बड़ा भरोसा भारी ॥४॥
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