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स्तवन-विभाग
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प्रयत्नश्रय प्रमाण
पत्रप्रसनननननननननननननननना प्रत्ययान्न प्रसस्त्रमनप्रजनननननन यत्रतत्र समापन समग्र
बहत्तर, सौ जोयण आयामा रे। पिहुल पणे पचास जोयण ना, प्रभु प्रासाद सुठामा रे ॥ नं०६॥ धनुष पांच से आयत प्रभु नी, विविध रतनमई काया रे। जिन कल्याणक उच्छव करवा, सुरपति भक्त आया रे॥ नं. ७ ॥ अंजन अंजनगिरि चहुं उवरे, चौमुख चार विशाला रे । वाव वाव विच इक इक पर्वत, राजत रंग रसाला रे ।। नं. ८ ॥ चौसठ सहस जोयण उत्तंगे, दस सहस सत पिहुला रे । चिहूं दिसि सोल सहस दधिमुखगिरि, तिहां प्रासाद सुविमला रे ॥ नं. ९ ॥ वावनें अंतर विदिशे, रतिकर पर्वत रूडा रे । दोय दोय संख्या जगदीशें, कह्या नहीं ए कूडा रे। नं० १० ॥ जोयण सहस मांन दस ऊंचा, दस दस सहस विस्तारा रे । झल्लरि सम संठाण जगत्गुरु, निश्चय ए निरधार या रे ॥ नं० ११ ॥ तेह ऊपर प्रासाद सतोरण, अंजन गिरि परमाणे रे । जिन पडिमा नी संख्या तेहिज, श्री जिनराज वखाणे रे ॥ नं० १२ ॥ इम प्रासाद प्रभू ना
बावन, नंदीसर वर दीपे रे । द्रव्य भाव विधि पूजा करतां, मोह महा भट * जीते रे ॥ नं १३ ॥ प्रवचन सार उद्धार प्रकरणे, जीवाभीगम जाणो रे । | इम अधिकार छे ग्रन्थ अनेके, इहां संका मत आणो रे ॥ नं. १४ ॥ जिम सुरपति विरचे तिहां पूजा, ते अनुभव इहां ल्यावो रे । ध्यावो जिम पावो परमातम, जैनचन्द्र गुण गावो रे ॥ नं० १५ ॥
शासन देवी स्तवन ( सरसति शासन बीनवं रे, सद्गुरु लागू पाय रे ) शासन देवी आवो नो हमारे घर पाहुनी हो लाल । गढ पर्वतसे ऊतरी रे, हाथ कमल सीस फूल रे। शासन देवी भलिभलि भगत करीपरें रे, शासन देवी आओ खरतर गच्छ पाहुनी हो लाल ॥१॥ सिर पर सोहे फूल डोरे, राखड़ी को अधिक बनाव रे शासन देवी । नाके बेसून बन
* यह स्तवन उद्यापन तपस्यादि महोत्सव में रात्रि को घर में जागरण करते समय सम्पूर्ण भजनों से पहले शासन देवी का स्तवन पढ़ा जाता है तथा उसकी पूजन की जाती है। इसके बाद दूसरे स्तवन पढ़े जाते हैं।
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