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न दिया हो। इत्यादि दर्शनाचार सम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्खी दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन,बचन, काया कर मिच्छामि दुक्कडं ॥ ___ चारित्रोचार के आठ अतिचार-पणिहाण जोगजुत्तो पंचहि समइहि, तीहिं गुत्तीहिं । एस चरित्तायारो, अट्ठविहो होइ नायव्बो ॥" ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति,आदाण भंडमत्त निक्षेवणा (निक्षेपना) समिति और पारिष्ठापनिका समिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और काय गुप्ति ये आठ प्रवचन माता रूप, पांच समिति और तीन गुप्ति सामायिक पौषधादिक में अच्छी तरह पाली नहीं । इत्यादि चारित्राचार सम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्खी दिवसमें सूक्ष्म या बादर जानते या अजानते लगा हो वह । सब मन, वचन, काया कर मिच्छामि दुक्कडं ॥
विशेषतः श्रावक धर्म सम्बन्धी श्री सम्यक्त्व मूल बारह व्रत सम्यक्त्व * के पांच अतिचार-"संका कंख विगिच्छा.” शंका श्री अरिहन्त प्रभु के
बल अतिशय ज्ञान लक्ष्मी गम्भीर्यादि गुण शाश्वती प्रतिमा चरित्रवान् के चारित्र में तथा जिनेश्वर देव के वचन में सन्देह किया। आकांक्षा ब्रह्मा, विष्णु, महेश, क्षेत्रपाल, गरुड़, गूंगा, दिक्पाल, गोत्रदेवता, नवग्रह पूजा, गणेश, हनुमान, सुग्रीव, बाली, माता मसानी आदिक तथा देश, नगर, ग्राम, गोत्र के जुदे-जुदे देवादिकों का प्रभाव देख कर, शरीर में रोगान्तक कष्ट आने पर इहलोक तथा परलोक के लिये पूजा मानता की । बौद्ध सांख्यादिक, सन्यासी, भगत, लिंगिये, जोगी, फकीर, पीर, इत्यादि अन्य दर्शनियों के मन्त्र यन्त्रों का चमत्कार देख कर परमार्थ जाने बिना मोहित हुआ । कुशास्त्र पढ़ा, सुना । श्राद्ध (सराध) वार्षिकश्राद्ध, होली, राखड़ीपूनम (राखी ) अजाएकम, प्रेतदृज, गौरी तीज, गणेश चौथ, नाग, पञ्चमी, स्कंद षष्ठी, झीलणा छठ (झूलना छठ), शील सप्तमी, दुर्गाष्टमी, रामनामी, विजयादशमी, व्रत एकादशी, वामन द्वादशी, वत्स ई
मरने के बाद वारहवी, तेरहवीं, तृमासिक, षट्मासिक, वार्षिक श्राद्धादि करना जैन # धर्मानुसार उपयुक्त नहीं है।
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