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అవయవమునందనవుడు చదవడం
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दिवी आबूकारे ॥ आ० १॥ देव दुंदुभी बाज रही है, सोनइयारी बरखा। बारे मास सों कियो पारनो, गई भूख सब तिरखा रे ॥ आ. २॥ ऋद्धि ।। सिद्धि कारज मनोकामना, घर घर मंगलाचार । दुनिया हरख बधामणा । सिरे, आखा तीज तिवहार रे ॥ आ० ३ ॥ श्री शजा सिद्धक्षेत्र है, मोटो कहिये धाम । श्री संघ का मनोरथ पूरे, पूरे मोटा खाम रे ॥ आ०४॥ संकट काटो विघन निवारो, राखो मेरी लाज । बे करजोड़ी नानू कहता, ऋषभदेव महाराज रे ॥ आ० ५॥
ऋषभ जिनेसर पारणो हथनापुर में ऋषभ जिनेसर किया पारनो । जन्म लियो प्रभु नगर विनीता, नाभी राजा नंद । मरुदेवी माताकी कुंखे, आयो आनंद कंद ॥१॥ इन्द्रादिक मेरू पर्वत पर, इन्द्राणी मिल संग । अट्ठाई महोत्सव करने के हित, लाए गुण भगवंत ॥२॥ ले दीक्षा प्रभु विचरण लागे, प्राप्त कियो शुभ ज्ञान । विचरत विचरत हथनापुर में, आये दया निधान ॥३॥ दर्शन से श्रेयांस कुमर के, हिय में उपजा ज्ञान । शीश नमाय प्रभू को दीना, शुद्ध भाव से दान ॥४॥ इथू रस से किया पारणा, घड़ा एक सौ आठ। पुरवासी सब मुदित हुए, तब निरख करम का नाठ ॥५॥ देव दुन्दुभी बाजन लागी, सोनइयां की वरषा। आखा तीज परव का दिन है, सूरज* का मन हरषा ॥६॥
नव पदजी की लावणी जगत में नवपद जयकारी, पूजतां रोग टले भारी । प्रथम पद तीर्थपती राजे, दोष अष्टादशकू त्याजे । आठ प्राति हारज छाजे, जगत प्रभु गुण बारे साजे ॥ अष्ट कर्म दल जीतके, सकल सिद्धि ते थाय । सिद्ध
अनंत भजो बीजे पद, एक समय शिव जाय ॥ प्रकट भयो निज स्वरूप * भारी ॥ जगत. १ ॥ सूरि पद में गौतम केशी, ओपमा चंद सूरज जैसी ।
* यह स्तवन रंग विजय खरतरगच्छीय श्री पूज्यजी श्री जिन रत्न सूरिजी महाराज के : शिष्य जैन गुरु पं० प्र० यति सूर्य मल्लजी ने बनाया है।
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