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जैन-रत्नसार अश्वसेन के कुल में शोभे जैसा सरद पूनम चन्दा ॥ स्वर्गलोक में हुवा आनन्दा, इन्द्राणी मंगल गावे । तेतीस कोड देवता मिलकर, उच्छव करणे • आवे ॥ २॥ कोइ आवता कोइ गावता, कोइ नाम लेता देवा । चौसठ इन्द्र अरज करता, चन्द सूरज करता सेवा ॥ केइ सुर नर साहेब के आगे, अरज करंता खड़ा खड़ा । जिनके सरूप को पार न पावे, जिनका गुण है सबसे बड़ा ॥३॥ दूर देस से आया जोगी, बड़े जोर तपस्या करता । नीचे लगाता ज्वाला जोगी, बड़े बड़े झोंके खाता ॥ बारह बरस की उमर प्रभू की, छोटेपन में बहुत कला । बरोबरी के लिये सोवती, तपसी कू देखन चला ॥ ४ ॥ ज्ञान देखके बोले जोगीसे, ऐसी तपस्या क्यूं करता। ओ जोगी ! तेरे बड़े लकड़े में, बड़ा नाग इक अधजलता ॥ पारसनाथ जोगी सूं कहता, तो भी जोगी नहीं सुनता । लकड़े दिये फेंक जंगल में, लोक तमासा देखता ॥ ५ ॥ क्या किया बे जोगी तुमने बड़ा नाग को | जला दिया । दिया सार नवकार नाग कं, धरणीधर पदवी पाया । बड़ी उमेद से आया साहिब, सम्बत्सरी का दान दिया। मात पिता की आज्ञा लेकर, महाराज ने योग लिया ॥ ६ ॥ राज छोड़के चले जंगल में जुगती से काउसग्ग किया । बड़े धीर गम्भीर प्रभूने, तीन लोक में नाम किया ॥ उष्णकाल की बड़ी धूप में, निरंजन निराकार खड़ा । कमठासुर ने किया कडाका, नभ मण्डल बादल चढ़ा ॥७॥ उसी दिनमें कमठासुर ने, पिछला दावा जगवाया। मेघ माली की सेना लेकर, जल कू जलदी बुलवाया । बड़ा किया घनघोर जोरसे, पवन चलाया मतवाला । कडड कडडकर हुआ कडाका, बिजलीका उजवाला ॥८॥ मूसलधार मेघ बरसता, गगन गाजता चौताला । सात खूट की बड़ी झड़ी में, प्रभू खड़ा है मतवाला ॥ नाक बरोबर आया पानी, नाथ निरंजन धीर बड़ा । पराजय नहिं होय जिनूंका, ऐसा प्रभु का ध्यान चढ़ा ॥ ९ ॥ संकट से सिंहासन डोला, हुवा घण्टका आवाजा । अवधि ज्ञान से इन्हें देखा, धाओ धाओ धरणी राजा ॥ धरणी
धर जलदी से आया, पदमावती कू संग लिया । पदमावती ने लिया शीश अत्रत्रयाययक्रमका
नननननननननननननननननननननननननननननननन प्रणालमनाममा मानना
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