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जैन-रत्नसार चउहा पूजा इम उत्तर झयणे, भावी केवल भोगी रे ॥ सु० ७ ॥ एम पूजा बहु भेद सुगीने, सुखदायक शुभ करणी रे । भविक जीव करसे तेले से, . आनंद घन पद धरमी रे ॥ सु० ८॥
श्री शीतल जिन स्तवन
( मंगलिक माला गुणहि विसाला) शीतल जिनपति ललित त्रिभंगी, विविध भंगी मन मोहे रे । करुणा कोमलता तीक्षणता, उदासीनता सोहे रे ॥ शीतल० १ ॥ सर्व जन्तु हितकरणी करुणा, कर्म विदारण तीक्षण रे। हाना दान रहित परणामी, उदासीनता विक्षण रे ॥ शीतल. २॥ पर दुःख छेदन इच्छा करुणा, तीक्षण पर दुःख रीझे रे। उदासीनता उभय विलक्षण, एक ठामे केम सीझे रे॥ शीतल० ३ ॥ अभयदान तेम लक्षय करुणा, तीक्षणता गुण भावे रे । प्रेरण विण कृत उदासीनता, इम विरोध मति नावे रे ॥ शीतल०४॥ शक्ति व्यक्ति त्रिभुवन प्रभुता, निग्रंथता संयोगे रे। योगी भोगी वक्ता मौनी, अनूप योगि उपयोगे रे ॥ शीतल० ५॥ इत्यादिक वहु भंग त्रिभंगी, चमतकार चित देती रे। अचरजकारी चित्र विचित्रता, आनंद घन पढ़ लेती रे ॥ शीतल० ६॥
श्री श्रेयांस जिन स्तवन
(अहो मतवाले साजना) - श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी, आतमरामी नामी रे। अध्यातम मत पूरण पामी, सहज मुगति गति गामी रे ॥ श्री श्रेयांस० १ ॥ सयल संसारी इन्द्रियरामी, मुनिगण आतमरामी रे। मुख्य पणे जे आतम रामी, तो केवल निःकामी रे॥ श्री० २ ॥ निज स्वरूप जे किरिया साधे, तेह अध्यातम लहिये रे । जेह किरिया करि चउगति साधे, तेन अध्यातम कहिये रे ॥ श्री. ३ ॥ नाम अध्यातम ठवण अध्यातम, द्रव्य अध्यातम छंडो रे । भाव अध्यातम निज गुण साधे, तो तेहसंरढ़ मंडोरे।। श्री० ४॥ शब्द अध्यातम अरथ सुणी ने, निर विकल्प आदर जो रे। शब्द अध्या
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