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जैन रत्नसार
. ............ : लाल, मगसिर मास रसाल । श्री जिन रंग' पसावले रे लाल, फलिय मनोरथ माल ॥ सु० १५ ॥
ऋषभ देव स्तवन
॥ राग मांड ॥ थारा दरशन पाया आज, दुखड़ा भांजे जी । म्हारा दुखड़ा भांग्या जाय, थारो मुखड़ो देख्यां जी ॥ मरु देवी को लाड़लो जी, नाभि रायनो नन्द । विनीता माही आवियो जी, पूजें इन्द्र अहमिन्द्र ॥ म्हारा० १॥
इक्ष्वाकु वंश मांही जनमियोंजी, सोवन सरिखी देह । वृषभ लञ्छन प्रभु 1 तांहरोजी, आनन्द हर्ष धनेह ॥ म्हारा० २ ॥ वदी चैत्रकी अष्टमी जी, E
लीनो प्रभु अवतार । देव देवाङ्गना आविया जी, पूजन अष्ट प्रकार ॥ म्हारा०३ ॥ नन्दीश्वर पर लेगयां जी. महोत्सव अठाई धार । समकित वां
निरमल करी जी, लेख सिद्धान्त मझार ।। म्हारा० ४॥ इम जो करणी , आदरें जी, श्रावक श्राविका सार समकित सुध अपनी करें जी, उतरे भव
जल पार ॥ म्हारा० ५ ॥ शत्रुञ्जय आवू सोहतां जी, देश मेवाड़ा आप। केशरियाजीके नामसू जी, कटे पाप संताप ॥ म्हारा० ६ ॥ संबत् उणीसे सत्ताणवेजी, नयरी कलकत्ता जान । पोष सुदी दशमी तिहां जी, मांडराग सुविहान ॥ म्हारा० ७॥ गच्छ खरतरमें राजियोजी, रतन सूरि सुखकार । यति* सूरजने धारियो जी, रिषभ देव आधार ॥ म्हारा० ८॥
आदिनाथ स्तवन ऋषभ जिनेसर दिनकर साहिब, वीनतड़ी अवधारो रे जगनातारो, मुझ तारो जी कृपानिधि खामी । जग जशवाद प्रगट छे ताहरो, अविचल सुख दातारो रे ॥ ज० १॥ निज गुण भोक्ता, परगुण लोप्ता,
• यह स्तवन जैनाचार्य जं० यु० प्र० वृ० भट्टारक श्री जिनरंग सूरिजी महाराज ने बनाया है।
* यह स्तवन रंगविजय खरतर गच्छीय जैन गुरु पं० प्र० यति सूर्य्यमलजीने सम्वत् । १९६७ पौष सुदी १० को बनाया है।
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