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जैन-रत्नसार
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॥ अष्टमी चैत्यवन्दन ॥ आठ त्रिगुण जिनवरनी, करूं नित प्रति सेव । दंड वीरज राजा थयो, अष्टमि तप नित मेव ॥१॥ आठ करम दुरे करो, करो प्रभु नित सेव । पार्श्व प्रभू नित ध्यावतां, वर्ते आनंद मेव ॥२॥ चैत्र वदी आठमE दिने, जनम्या ऋषभ जिनंद । जिन चारित्र सूरी तणों, वंदे माणक चंद ॥३॥
॥ एकादशी चैत्यवन्दन ॥ एकादश पडिमा वहो, पढ़ो इग्यारे अंग । एकादशी आराधिये, करिये गुरुनो संग ॥१॥ जन्म दीक्षा केवल लह्या, प्रभु श्री मल्लि नाथ । व सुव्रता ए तिथि वही, गयो मुक्ति के साथ ॥२॥ मौन करी आराधिये, एकादशी शुभ मेव । जिन चारित्र सूरी तणां, माणक करे नित मेव ॥३॥
॥ चतुर्दशी चैत्यवन्दन ॥ चौद सुपन लहे मात ए, श्री जिनवर केरी । चौद रयनपति जेहना, प्रणमें पद फेरी ॥१॥ चउदश दश जिन बंदिये, भावधरीने आज । जन्म मरण मिट जात ए, फेरी चौदा राज ॥२॥ जंगम युग प्रधान ए, श्री चारित्र सुरिंद । पदम प्रमोद प्रसाद थी, लहे माणक विद्या वृन्द ॥३॥
॥ चैत्यवन्दन विभाग समाप्त ।।
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అటుకుంటుండగుడుకు పుడకుడదు.
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