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________________ चैत्यवन्दन-विभाग ४७६ ॥श्री वासुपूज्य जिन चैत्यवन्दन ॥ बारम जिनवर वासु पूज्य, बहु सुजस निधान । श्री वसुपूज्य जया । सुतन, माणिक सम यान ॥१॥ महिष लञ्छन सत्तर धनुष, जसु देह है । प्रमाण । बरस बहत्तर लाख जासु, आयुष्य पिछाण ॥२॥ चउत्थ भत्त संजम लियो ए, चम्पापुरी शुभ ठाम । बासठ गणधर सूं जुगत, आपो शिवपुर स्वाम ॥३॥ सहस बहुत्तर सुद्ध साधु, साध्वी इक लख । दोय लाख पनरे सहस, श्रावक सुध पख ॥४॥ चौ लख सहस छतीस, मान श्रावकणी । सार । चण्डा देवी कुमार यक्ष, नित सांनिधिकार ॥५॥ षट् सय मुनि परिवार सुंए, मास खमण तप जाण । प्रभु सीधा चम्पापुरी, करो संघ कल्याण ॥६॥ ॥श्री विमल जिन चैत्यवन्दन ॥ श्री कृतवर्म कुलावतंस, श्यामा तनु जात । सूकर लाञ्छन कनकवान, श्री विमल विख्यात ॥१॥ धनुष साठ सुप्रमाण जासु, तनु उच्च विराजे । * आयु वच्छर साठ लाख, जसु निरमल छाजे ॥२॥ छह भत्त संजम लियो ए, कम्पिलपुर शुभ ठाम । गणधर सत्तावन सहित, आपो शिवपुर स्वाम ॥३॥ मुनिवर अड़सठ सहस मान, अड़सय इक लख । श्रमणी श्रावक अड़ सहस, ऊपर दोय लख ॥४॥ च्यार लाख सुश्राविका, चौबीस हजार । अषण्मुख सुर विदिता सुरी, नित सांनिधिकार ॥५॥ छ सहस मुनि परिवार सु ए, मास खमण तप जाण । प्रभु सीधा सम्मेत गिरि, करो संघ कल्याण ॥६॥ ॥ श्री अनन्त जिन चैत्यवन्दन ॥ जय जय देव अनन्तनाथ, सोवन सम वान । सुजसा देवी सिंहसेन, कुल तिलक समान ॥१॥ श्येन लञ्छन धर तीस लाख, संवच्छर आय ।। सुन्दर धनुष पचास मान, उन्नत जस काय ॥२॥ छह भत्त संजम लियो ए, नयरि अयोध्या नाम । निज पचास गणधर सहित, आपा शिवपुर खाम ॥३॥ मुनिवर बासठ सहस मान, तह बासठ सहस। आयर्या श्रावक elsตได้นัดฟัดเซตใจงดง reไดอกไllet ในไกลไกใจใกได้โดดไeterใจได้ฟังเป็นปัจจไดโอในโๆจะได้ใจไม่ได้ใช้ อปได้ใจได้ใจได้ในไตไดข้าใจไว้ในใจไขมันใจในการโดยไม่ได้ให้ดในผลในใจได้ในคนไขได้ในไตไอดได้ไง
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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