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पूजा-विभाग । फतेमल्ल भडगतिया श्रावक, पहली शंका जोर करी रे ।। ध्व० ४ ॥ परतिख देखू तब मैं जानें, प्रगट्या तत्क्षण तरण तरी रे । पुप्पमाल शिर केशर टीका, अधर श्वेत पोशाक धरी रे ॥ ध्व० ५ ॥ मांग मांग वर बोले वाणी, फरक बतायो गुरु मेघ झरी रे । फरक बतायो दोय लाख पर, तेरी महिमा नित्य हरी रे ॥ ध्व० ६ ॥ गैनचंद गोलेछाको ते, परतिख दीना दरस फरी रे। विक्रमपुरमें थंभ तुमारा, चित्र करावत सुर सुन्दरी रे ॥ ध्व० ७ ॥ थानमल्ललूणियां पर किरपा, लखमी लीला सहज वरी रे । लखमीपति दुगडकी साहिब, हुंडीकी भुगतान करी रे ॥ ध्व० ८ ॥ जा उपगार करया से मेरा, दीनी सम्मुख अमृत झरी रे। तेरि कृपासें सिद्धि पाई, जागे जस अरु भाग भरी रे ॥ ध्व० ९॥ भूखा भोजन तिसिया पानी, भरत हजारी देव परी रे । विषम बखत पर सहाय हमारे, ऋद्धिसार की गरज सरी रे ॥ ध्व० १०॥
॥ श्लोक मधुरध्वनिकिङ्किणीनादकैर्ध्वजविचित्रितविस्तृतबासकैः। सकल मङ्गल चाञ्छित दायको कुशलसूरिगुरोश्चरणौ यजे ॥११॥ ॐ ह्रीं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिनशासनोद्दीपकाय शिखरोपरि ध्वजां आरोपयामि स्वाहा।
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कलश भट्टारक पदवी मिली, जीते बादी वृन्द । कंठ विराजित सरस्वती, जगमें श्री जिनचन्द ॥१॥
॥राग अशावरी ॥ (पूजन जग सुखकारी सुगुरु तेरी पूजन ) तर चरण कमल बलिहारी ॥ सु० ॥ साह सलेम दिल्लीको बादशाह, सुनक शोभा तिहारी । भट्ट हरायो चरचा करके, भट्टारक पदधारी॥ सु० २॥ अमावसकी पूनम कीनी, चंद उगायो भारी। चढके गगन करी है चरचा रजस तप धारी ॥ सु० ३ ॥ उगनीसे चोदेकी सालमें, लखनउ नगर
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