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जैन - रत्रसार
आणंद चंद, जय पास सुहुन्भव ॥ १२॥ निम्मल केवल किरण गियर, बिहुरिय तम पहयर । दंसिय सयल पयत्य सत्य, वित्थरिय पहा भर । कलि कलुसियजण घूय लोय, लोयणह अगोयर । तिमिरइ णिरुहर पासणाह, भुवणत्तय दियर ||१३|| तुह समरण जल वरिस सित्त, माणव मइ मेइणि । अवरावर सुहुमत्थ बोह, कंदल दल रेहिणि । जायइ फल भर भरिय हरिय, दुह दाह अणोवम । इय मइ मेइणि वारिवाह, दिस पास मई मम ॥ १४ ॥ कय अविकल कल्लाण वल्लि, उल्लूरिय दुहवणु । दाबिय सग्ग पवग्ग मग्ग, दुग्गइ गम वारणु । जय जंतुह जणएण तुल्ल, जं जणिय हियावहु । रम्मु धम्मु सो जयउ पास, जय जंतु पियामहु ॥१५॥ भुवणारण्णनिवास दरिय पर दरिसण देवय | जोइणि पूयण खित्तवाल, खुद्दासुर पसुवय । तुहउत्तट्ठ सुण्ड सुहु, अविसंलु चिठ्ठहि । इह तिहुअण वणसीह पास, पावाइ पणासहि ॥ १६ ॥ फणिफणफारफुरंत रयण, कर रंजियणहयल । फलिणीकंदलदल तमाल, णीलुप्पलसामल । कमठासुर उवसग्ग वग्ग, संसग्ग अगं - जिय । जय पच्चक्ख जिणेस पास, थंभणय पुर ट्ठिय || १७|| मह मणु तरलु पमाणु णेय, वायावि विठ्ठलु । णय तणुरवि अविणय सहावु, आलस - विहलंघलु । तुह माहप्पु पमाणुदेव, कारुण्ण पवित्तउ । इय मइ मा अवहीर पास, पालिहि विलवंतउ ॥१८॥ किं किं कप्पिउ णय कलुणु, किं किंव जंपिउ । किं चण चिट्ठिउ किट्टु देव, दीणयमवलंबिउ | कासु किय निष्फल्ल लल्लि, अम्मेहि दुहत्तिहि । तहवि ण पत्तउ ताणु किंपि, पद्म पहु परिचतिहि ॥१९॥ तुहु सामिउ तुहु मायबप्पु, तुहु मित्त पियंकरु | तुहु गइ तुम तुहूजिता, तुहु गुरु खेमं करु । हउं दुहभरभारिउ वराउ, राउ णिन्भग्गह । लीणउ तुह कम कमल सरणु, जिण पालहि चंगह ||२०|| पइ किवि कय णीरोय लोय, किवि पाविय सुहस्य । किवि मइमंत महंत केवि, किवि साहिय सिव पय । किवि गंजिय रिउ वग्ग के वि, जस धवलिय भूयल । मइ अवहीरहि केण पास, सरणागय वच्छल ॥२१॥ पच्चु - वयार निरीह णाह, णिफण्ण पओयण । तुह जिणपास परोवयार, करणिक्क परायण । सत्तु मित्त सम चित्त वित्ति, णय दिय सम मण । मा अवहीरि
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