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డుదల చదవడabhatshathallilah
రులుండashtakshasailarshakthitaha datalabట్టి जैन-रत्नसार
Ratalathalalkedishhinalaigatotalalalalaataalisanilialistastronlinetohathistosaning
नमामि जिनराज पदानि तानि॥२॥ बोधागाधं सुपदपदवी, नीर पूराभिरामं । जीवाहिंसा विरल लहरी, सङ्गमागाह देहं । चूलावेलं गुरुगममणी, संकुलं दुरपारं । सारं वीरागम जलनिधि, सादरं साधु सेवे ॥३॥ आमूला लोलधूली बहुल परिमला, ली, लोलालिमाला । झंकारा रावसारा मल दल कमला, गारभूमि निवासे ! छाया संभार सारे ! वरकमल करे ! तार हाराभिरामे ! वाणीसन्दोह देहे ! भव विरह वरं देहि मे देवि ! सारम् ॥ell
सामायिक पारण सूत्र* भयवं दसण्णभद्दो । सुदंसणो थूलभद्द वइरो य । सफली कय गिहचाया। साहु एवं विहाहुँति ॥१॥ साहूण वंदणेणं । णासइ पावं असं
किया भावा । फासुअ दाणे निज्जर । अभिग्गहो णाण माईणं ॥२॥ छउके मत्थो मूढमणो । कित्तिय मित्तंपि संभरइ जीवो॥ जं च ण संभरामि अहं ।
मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥३॥ जं जं मणेण चिंतिय मसुहं वायाइ भासियं किंचि । असुहं काएण कयं । मिच्छामि दुक्कडं तस्स ||४|| सामाइय पोसह संठियस्स । जीवस्स जाइ जो कालो ॥ सो सफलो बोधव्यो । सेसो संसार फलहेउ ॥५॥ सामायिक विधि से लिया, विधि से किया, विधि करते अविधि आशातना लगी हो, दस मनके, दस वचनके, बारह काया के इन बत्तीस दोषोंमें से जो कोई दोष लगा हो, वे सब मन, वचन, काया करके मिच्छामि दुक्कडं ॥
श्री अभयदेव सूरिकृत जयतिहुअण जय तिहुअण वर कप्परुक्ख, जय जिण धण्णंतरी। जय तिहुअणकल्लाण कोस, दुरियक्करि केसरी ॥ तिहुअण जण अवलंधिआण, भुर्वण त्तय • सामिय । कुणसु सुहाइ जिणेस पास, थंभणय पुरहिय ॥१॥ तइ समरंत लहंति झत्ति, वर पुत्त कलत्तइ । धण्ण सुवण्ण हिरण्ण पुण्ण, जण मुंजइ
* इसकी पहली गाथामें भगवान दशार्णभद्रादि साधुओंको वन्दन है दूसरीमें साधुओंको वन्दन और शुद्ध आहार देनेका फल तीसरी और चौथी गाथामें जो कुछ अनजानपनेसे याद न रहा हो तथा मन, वचन, काय द्वारा अशुभ चिन्तन सामायक में किया हो उसका पश्चात्ताप है।
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