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RaatshaayatarakestatekarActokamatechntereetitimetabooshtrabiaenakaastestobokatondolestati state ३८०
जैन-रत्नसार
३८० . .. . "
श्रमप्रभूत्रप्रवन नगणनामा प्रयाप्रमाप्रश्न
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अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् धर्म जिनेन्द्राय जलं, चन्दनं, पुप्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा।
षोडश श्री शान्ति जिन पूजा
॥दोहा॥ अचिरा उदरे अवतरी, शांति करी सुखकार । मारि विकार मिटायके, नामधरयो शांतिसार ॥१॥
॥ राग विभास ॥ (भावधरि धन्य दिन आज सफलो गिj,) शान्ति जिनचंद्र निज चरण कज शरण गत, तरणि गुणधारि भववारि तारी । कुमति जन विपिन जनि, कुमति घन वृतनि तति, छितिन शितधार तरवार वारी ॥ शां० २ ।। एक भव पद उभय चक्रधर तीर्थकर, धारिया वारिया विधनवारी। सकल मद मारिया, विमल गुण धारिया सारिया भक्ति वंछित अपारी ॥ शा० ३॥ हरिण लंछन धरा, वर्ण सुवरण करा, सुरवरा हित धरा गत विकारी । मोहभट धरणि धरगण हरण वजूधर, कुमुद शिवचन्द्र पद रजनिकारी ॥ शा० ४ ॥
॥काव्य ॥ ___सलिल चन्दन पुष्प फलवजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः जिनममीभिरहं वसुभिर्यजे ॥५॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् शान्ति जिनेन्द्राय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूप, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा।
सप्तदश श्री कुन्थु जिन पूजा
॥ दोहा ॥ सतरम जिनवर दीपसम, मझि भवसागर जाण । भक्ति युक्ति नित पूजिये,लहिये अमल विनाण ॥१॥
IERRESS RELEADERSHEKHAKESTREEThain ATTARAKHtiohakiri Exation