SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 396
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७२ जैन - रत्नसार रेवाला, विमल चिदानन्द खामी रे ॥३॥ वांछित पूरण सुरमणि रेवहाला, ए प्रभु अंतरजामी रे । ऐसे जिन महाराज रे वहाला, शिवचन्द नमें शिर नामी रे ||४|| ॥ काव्य ॥ सलिल चन्दन पुष्प फलब्रजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधु प्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिर्य्यजे ||५|| ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् अभिनन्दन जिनेन्द्राय जलं, चन्दनं पुष्पं, धूप, दीप, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां जाम स्वाहा । पञ्चम श्री सुमति जिन पूजा ॥ दोहा ॥ पञ्चम जिननायक नर्मू, पंचमि गति दातार । पंचनावर विमल कज, वन विकसन दिनकार ॥१॥ ॥ राग कैरवो ॥ ( बंसी तेरी वैरिणी बाजे रे, ) सुद्धभाव चितथिर घरिके रे । पूजा सुमति जीणंद ॥ सुद्धभाव० ॥ जिन भक्तिकरण रसीला, लहो परम आनंद ॥ सुद्धभाव० २ ॥ जिनराज सुमति समन्दा, करें कुमति निकन्द । प्रभुना चरण अरविन्दा, चंदे असुर सूरिन्द | सुद्ध० ३ || कनकाभ तनु द्युति सोहे प्रभु सुमंगलानन्द । करुगोपशम रस भरिया, बंदे नित शिवचन्द || सुद्ध० ४ ॥ ॥ काव्य ॥ सलिल चन्दन पुष्प फलब्रजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः जिनममीभिरहं वसुभिर्य्यजे ||५|| ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् सुमति जिने - न्द्राय जलं चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा । "
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy