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पूजा-विभाग । हितधारी || भा० ४॥ सकल सूत्र उपदेश दियणते, वाचक अति विमलाचारी । भव त्रीजे अमृत सुख पावे, सुर असुरेन्द्र मनोहारी ॥ भा० ५॥ हय गय वृष पंचानन सरिखा, करमफंद वर नर वारी । वासुदेव वासव नृप, दिनकर विधु भंडारि तुलाधारी ॥ भा० ६ ॥ जंवू सीता नदीकांचन गिरि, चरमजलधि ओपमा भारी । ए ओपमा बहुश्रुतनी जाणी, उत्तराध्ययन कही सारी ॥ भा० ७ ॥ अनल पंचविंशति गुण मणि निधि, सकल भुवन जन उपगारी । संशय तिमिर हरण वासर मणि, पाप ताप ओतपवारी भा०८॥ प्रवर शङ्ख पय भरियो सो हे, तिम ए ज्ञान चरण चारी, महेन्द्रपाल पाठकपद सेवा लहियो जिनपद विजितारी ॥ भा० ९ ॥
काव्य॥ सव्वोहि बीजांकुर कारणाणं, णमो णमो वायग वारणाणं । कुचोहि दंती हरिणेसराणं विग्घोष संताव पयोहराणं ॥१०॥ ॐ ह्रीं श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः ॥११॥
सप्तम साधुपद पूजा
॥दोहा॥ जाणे जिनवाणी सरस, स्यादवाद गुणवंत । मुनि कहिये शिव पंथने, साधे साधु कहत ॥१॥ शमता रस जल झीलता, विशदानंद स्वरूप । तिण पाम्यो पद सप्तमे, नमो नमो मुनि भूप ॥२॥
॥राग भीम मल्हार ॥
(मेघ बरसे भरी पुष्प बादल करी,) भक्ति धरि सातमे, पद भजो मुनिवरा, सुखकरा विजित इंद्रिय विकारा । गुण सतावीश भूषण करी शोभिता, क्षोभिता विकट क्रम सुभट सारा ॥भ० ॥ चरण सत्तरि परम, करण सत्तरि धरा, शिव करण नाण किरिया प्रधाना । प्रतिदिन दोप, आहारना वरजिता, सप्त चालीस यति धरम निधाना ॥भ० ४॥ मदन मद भंजता, कुमति जन गंजता, भक्त जन रंजता शांति धरिया ।
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