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पूजा-विभाग
॥ राग सोरठ ॥
(कुंदकिरण शशि उजलो रे देवा, ) ___ अनुभव परमानंद सं रे वाला, परमातम पद वन्दो रे, करम निकंदो वंदिने रे वाला, लहि जिन पद चिर नंदो रे ॥३|| गगन पएसंतर वली रे वाला, समयान्तर अणफरसी रे द्रव्य सगुण परजायनारे वाला, एक समय विद दरसी रे ॥४॥ एक समय ऋजुगति करी रे वाला, भए परमपद गामी रे । भांगे सादि अनंतमा रे वाला, निरुपाधिक सुखधामी रे ॥५॥ अखिल करममल परिहरी रे वाला, सिद्ध सकल सुखकारी रे। विमल चिदानन्द घनथया रे वाला, वर इकतीस गुणधारी रे ॥६॥ उत्पन्नता वलि विगमता रे वाला, ध्रुवता त्रिपदी संगे रे। प्रभुमें अनंत चतुष्कता रे वाला, सोहे समक्रम भंगे रे ॥७॥ पनर भेदें ए सिद्ध थया रे वाला, सहजानंद स्वरूपी रे। परम ज्योतिमें परिणम्या रे वाला, अव्यावाध अरूपी रे ॥८॥ जिनवर पिंण प्रणमें सदा रे वाला, एहने दिक्षा अवसरे रे । तिण प्रभुपद गुणमालिका रे वाला, कंठे धरिये सुमरे रे ॥९॥ हस्तिपाल भवि भगतिसं रे वाला, सिद्ध परमपद भजिने रे। पद श्रीजिन हरवं लह्यो रे वाला, परगुण परणति तजिने रे ॥१०॥
॥काव्य ॥ __लोगग्गभागोपरि संठियाणं, बुद्धाणसिद्धाण मणिदियाणं । णिस्सेस कम्मक्खय कारगाणं । णमोसया मंगल धारगाणं ॥११॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्धेभ्यो नमः।
तृतीय प्रवचनपद पूजा
॥दोहा॥ पद तृतीय प्रवचन नमो, ज्यूं न भमो संसार । गमो कुगति परिणमनता, दमो करण भयकार ॥१॥ जैसें जलधर वृष्टि ते अखिल फलद विकसाय । , तैसे प्रवचन भक्तितें, शुभ परिणति हुलसाय ॥२॥
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