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द्वादश पुष्पवर्षा पूजा
|| दोहा मल्हार रागां ॥
वर बारमी पूजमें, कुसुम बदलिया फूल |
हरण ताप सवि लोकको, जानु समा बहु मूल ॥१॥ ॥ राग भीम मल्हार देशी कडखानी ॥
मेघ वरसें भरी, पुप्फ बादल करी, जानु परिमाण करि कुसुम पगरं । पंच रणे बन्यो, धिकच अनुक्रम चण्यो, अधोवृन्ते नहीं पीड पसरं ॥ मे० २ ॥ वास महके मिले, भमर भमरी मिले, सरस रसरंग तिण दुख निवारी | जिनप आगे करे, सुरप जिम सुख वरे, बारमी पूज तिण पर अगारी ॥ मे० ३ ॥ ॥ राग भीम मल्हार ॥
पुप्फ वादलीया वरसे सुसमां ॥ अहो पु० ॥ योजन अशुचिहर वरसे गंधोदक, मनोहर जानु समां ॥ पु० ४ ॥ गमन आगमनकी पीर नहीं तसु, इह जिनको अतिशय सुगुणे । गूंजत गुंजत मधुकर इमप भणे, मधुर वचन जिन गुण थूणे || ५० ५ ॥ कुसुम सुपरि सेवा जो करे, तसु पीडा नहीं सुमणे सुमणे । समवसरण पंचवरण अधोवृत, विबुध रचे सुमणा सुसमा ॥ पु० ६ ॥ बारमी पूज भविक तिम करे, कुसुम विकसि हसि उच्चरे । तसु भीम बंधण अधरा हुवे, जे करहिं जे जिन नमें ||०|| त्रयोदश अष्ट मंगलीक पूजा
|| दोहा राग कल्याणमें ॥
तेरमी पूजा अवसरे, मंगल अप्ट विधान । युगति रचे सुमते सही, परमानन्द निधान ॥१॥
॥ राग बसंत ॥
अखंड गुणें भिला सालि रजत तणा तंदुला
अतुल विमल मिला, ए । श्लषण समाजकं, विध पंच वर्णकं, मेलि मंगल लिखे, सयल मंगल आखे,
चन्द्रकिरण जैसा ऊजला ए ॥ जिनप आगे स्थानक
धरे ए ।
तेरमी पूजाविधि तेरमी मन मेरे, अष्ट मंगल अष्ट सिद्धि करे ए ||अ०२ ||
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