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Itata Yastouts to t
जैन-रत्नसार
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आनंद पावें, नव भव शिव जावें देव नर भवजन्म पावें । ज्ञानविमल गुण गावें सिद्धचक्र प्रभावें, सवि दुरित सकावें विश्व जयकार पावें ॥९॥
|| ढाल ||
इच्छारोधन तप नमो, बाह्य अभ्यन्तर भेदें जी । आतम सत्ता एकता, पर परणति उच्छेदें जी इ० ॥१०॥
॥ चाल ॥
उच्छेद कर्म अनादि संतति जेह सिद्धिपणों वरे, शुभ योग संग आहार टाली भाव अक्रियता करें | अंतरमुहूरत तत्त्व साधे सर्व संबरता करी, निज आत्मसत्ता प्रगट भावें करो तपगुण आदरी ॥११॥
॥ ढाल ||
इम नवपद गुणमंडलं, चउ निक्षेप प्रमाणें जी । सात नये जे आदरें, सम्यग्ज्ञाने जाणें जी इ० ॥१२॥
॥ चाल ॥
निरधारसेती गुणे गुणनो करइ जे बहुमान ए । जसु करण ईहा तत्त्व रमणे, थाये निरमल ध्यान ए ॥ इम शुद्धसत्ता भलो चेतन सकल सिद्धि अनुसरें, अक्षय अनंत महंत चिदघन परम आनंदता वरे ॥ १३ ॥
॥ कलश ॥
इम सयल सुखकर गुणपुरंदर सिद्धचकपदावली, सबिलद्धिविज्जा सिद्धि मंदिर भविक पूजो मन रली । उवज्झाय वर श्रीराजसागर ज्ञान - धर्म सुराजता, गुरु दीपचंद सुचरण सेवक देवचन्द्र सुशोभता ॥ १४॥
॥ ढाल ||
जाणता त्रिहुं ज्ञान संयुत ते भवमुगति जिनंद । जेह आदरें कर्मख - पेवा, ते तपसुरतरु कंदें रे ॥ भ० सि० १५ ॥ करम निकाचित पिण क्षय जायें, क्षमा सहित जे करतां, ते तप नमिये तेह दीपावे, जिनशासन उजनंता रे ॥ भ० सि० १६ ॥ आमोसही पमुहा बहु लद्धि, होवे जासु प्रभावें । अष्ट महासिद्ध नवनिध प्रगटे, नमिये ते तप भावें रे ॥ भ०
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