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पूजा-विभाग
३१५ ॥श्लोक ॥ सकल पुद्गल संग विवर्जनं, सहज चेतनभावविलासकं । सरस भोजन नव्यनिवेदनात, परमनिर्वृतिभावमहं स्पृहे ॥१॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने 3. अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमज्जिनेन्द्रीयनैवेद्यं
यजामहे स्वाहा ॥७॥ मिठाई (पकवान) चढावे। ___अर्थ हे भगवन् सम्पूर्ण अपवित्र जड़ पदार्थों से रहित और स्वाभाविक चेतनभावको देनेवाले नवीन तथा सरस भोजन आपको निवेदन करनेसे मैं परम निर्वृति भाव (मोक्ष) को प्राप्त करना चाहता हूं।
फल* पूजा
॥ दोहा॥ पक्क बीजोरूं जिन करें, ठवतां शिवपद देइ । सरस मधुर रस फल गिणे, इह जिन भेंट करेइ ॥१॥
॥ ढाल | श्रीफल कदली सुरंग नारंगी आंबा सार, अंजीर बंजीर दाडिम करणा पट्बीज सफार । मधुर सुस्वादिक उत्तम लोक आनन्दित जेह, वर्ण गन्धादिक रमणीक बहुफल ढोवे तेह ॥२॥
॥चाल | फलभर पूजतां जगत स्वामी, मनु जगति ते लहे सफल पामी । सकल मनुध्येय गतिभेद रंगे, ध्यावतां फल समाप्ति प्रसंगे ॥३॥
॥ श्लोक ॥ कटुककर्म विपाक विनाशनं, सरसपक्वफलबजढीकनं । वहति मोक्षफलस्य प्रभाः पुरः, कुरुत सिद्धिफलाय महाजनाः ॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञान शक्तये जन्मजरामृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेन्द्राय फलं यजामहे स्वाहा ॥८॥ श्रीफल, सुपारी, नीला फल, प्रमुख चढ़ावे ।
अर्थ-ई नवनवृन्द आप उत्तम मोक्षफलक प्रभु (मोक्ष के देनेवाले) जिनेन्द्र भगवान : फे आगे मिद्धि फल प्राम करने के निमित्त कडुवे कर्म के परिणाम फल को नाश करने वाले सरस
मया परं फलों को घटाइये ।
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मात्र पृजा तथा अप्ट प्रकारी पूजा उपाध्याय देवचन्दजी महाराज की उनाई हुई है।
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