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॥ ढाल ॥ चउविह संघे जे मन धार्यो, मोक्ष तणो कारण निरधारयो । विविह कुसुम वर जाति गहेवी, तसु चरणे प्रणमंत ठवेवी ।
कुसुमाञ्जलि मिलो वीर जिणंदा तोरा चरण कमल चौबीस, पूजोरे चौबीस, सौभागी चौबीस, वैरागी चौबीस, जिणंदा । ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् वीर जिनेन्द्राय कुसुमाञ्जलिं यजामहे स्वाहा ॥१०॥ मस्तक पर टीकी दीजिये भवभवनो लाहो लीजिये । कुसुमाञ्जली चढ़ावे और मस्तक पर टीकी देवे । ।
॥ वस्तुछंद ॥ सयल जिनवर सयल जिन वर, नमिय मनरंग। कल्लाणकविहि संठविय करि सुधम्म सुपवित्त सुन्दर सय इग सत्तरि तित्थंकर इक समय विहरंति महियल चवण समय इगवीस । जिण, जम्म समय इगवीस ॥ भत्तिय भावे पूजिया करो संघ सुजगीस ॥११॥
भव तीजे समकित गुण रम्या। जिनभक्ति प्रमुख गुण परिणम्या ॥ तजि इन्द्रिय सुख आसंसयना। करि थानक वीसनी सेवना ॥१२॥ अति राग प्रशस्त प्रभावता। मनभावना एहवी भावता ॥ सविजीव करूं शासन रहसी ॥ ऐसी भावदया मन उल्लैसी ॥१३॥ लहि परिणाम एहवं भलू ॥ निपजाविय जिनपद निरमलं ॥ आउ बंध विचे एकभवकरी । श्रद्धा संवेग ते थिर धरी ॥१४॥ तिहां थी चविय लहे नरभव उदार ॥ भरते तिम एरवतेज सार ॥ महाविदेह विजय परधान ॥ मध्यखंडे अवतरे जिन निधान ॥१५॥
॥ ढाल ॥ ___पुण्ये सुपने ए देखें मनमां हरख विसेसें । गजवर उज्जल सुन्दर ॥ निरमल वृषभ मनोहर ॥१६॥ निरभय केशरी सींह। लखमी अतिहि अ वाह ॥ अनुपम फूलनी माला । निरमल शशि सुकुमाला ॥१७॥ तेज तरण
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